November 8

ज़मीर के चंद टुकड़े !

चंद चांदी के सिक्कों के खातिर हम
सोने सा ज़मीर का टुकड़ा गिरवी रख देते हैं !

नहीं सोचते पलभर को क्या खोना क्या पाना हैं !
जो ज़मीर को गिरवी रखता हैं कभी नहीं लौटाता हैं !
धीरे धीरे किस्तों में वो पुरे ज़मीर को खा जाता हैं !

अब नहीं ज़मीर हैं जिसका अपना वो कुछभी करजाता हैं
अस्मत से  खेलना माँ बहनो का
खून की होली दिनमे रात दिवाली कि बम बारूदों
से
उसका दिनचर्या बन जाता हैं !

मात पिता भाई बहन और हितैषी उसे बहुत समझाते हैं
पर उसका तो ज़मीर ही बिका हुआ था नहीं समझ वो
पाता हैं !

अपने ही देश के टुकड़े करने को दुश्मन से हाथ मिलाता हैं
और एक दिन देशद्रोही आतंकी बन अपना जान गंवाता हैं !

पर जाते जाते अंत समय में उसे समझ में आता हैं  कि
नाहक ही चंद सिक्कों के खातिर
अपने ज़मीर के टुकड़े को वो गिरवी रखदेता  हैं !

पर अब वक्त नहीं था पश्चाताप का पर एक संदेश
देश के युवाओ को वो दे जाता हैं !

चाहे कुछ भी होजाये
चंद चांदी के सिक्कों के खातिर
अपने सोने सा ज़मीर का टुकड़ा गिरवी क्यों रखना हैं !!!

— Written by Anil Sinha


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Posted November 8, 2020 by anilsinha in category "Poems

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