बरसात की एक रात !
वो बात वो रात
बरसात की वो रात
हरदम याद रहेगी!
जिसदिन हमारे जूनूने मोहब्बत की
तक़रीर लिखी गई थी!
मोहब्बत करते थे
बेइन्तहाँ उनसे
पर दरमयां हमारे
अमीरी गरीबी की दिवार खड़ी थी!
मिन्नतें आरजू, दिल की पेशकश
उन्हें जो रिझा ना पाई
तो हमने उन्हें पटाने की
एक फ़िल्मी तरकीब लगाई थी!
भाड़े के कुछ गुंडों को
उन्हें छेड़ने को उनके पीछे मैंने लगाई थी!
उस बरसात की रात
जब लगे गुंडे उन्हें छेड़ने
प्रेयशी को बचाने को हीरो बनके मैंने दौड़ लगाई थी!
पर मै चकराया वो भाड़े के गुंडे
मेरी ही सचमे करने लगे पिटाई
बात जबतक समझ मे आती
वो गुंडे तो असली थे काफ़ी हुई पिटाई थी!
अब इन गुंडों से अपनी प्रेयशी को
हर हाल मुझे बचानी थी
तब दाओ लगाके अपने जान का
मैंने लड़ी लड़ाई थी!
लहू लुहान हो उन गुंडों को मैंने मार भगाई थी
लिपट प्यार से मेरी प्रेयशी अपना आभार जताई थी!
चूम चूम कर मेरे ज़ख्ममो पे
प्यार का मरहम लगाई थी!
ऊंच नींच अमीरी गरीबी की
टूट गई सारी दीवारें
लग के छाती से मेरे
I Love you
जब वो बोली थी!
वो बात वो रात
बरसात की वो रात
हरदम याद रहेगी!!
– अनिल सिन्हा