प्रकृति !
क्या कुछ नहीं दिया प्रकृति ने मानवता के हित को
ये नदी नाले पहाड़ व पर्वत तथा घनेरे जंगल की छाया
जीने की सारी मूलभूत सुविधाओं को देकर
प्रकृति ने तो अपना प्रकृति धर्म हर हाल निभाया !
नीले अम्बर पे सूरज चाँद सितारे तथा
नौ ग्रहो को उसने है सजाया !
फूल फलों से सजा के
धरती के बगिया को मानो स्वर्ग बनाया !
क़द्र नहीं हमने की इसकी
नये शहर बसाने को पहले जंगल को कटवाया !
फिर भी चैन ना आया हमको तो
पूरे विश्व में जगह जगह पे परमाणु विस्फोट कराया !
शुद्ध करें जो जीव हमारे जल को
कल कारखानों के गंदे रसायनो से उनको भी मरवाया
छिपा रखी थी जो खनिज सम्पदा धरती आपने गर्भ में
खोद निकाल हमने वो सब धरती को कमजोर बनाया !
जब जब किया जुल्म धरती पर हमने
प्रकृति ने अपना आक्रोश जताया !
मूक प्रकृति कर भी क्या सकती थी
फिर भी सांकेतिक भाषा कभी बाढ़ कभी भूकंप
के रूप में अपना रौद्र रूप दिखाकर हमको समझाया !
समझ, नासमझ बने रहें हम
उलटे आपदा प्रबंधन टीम बनाया !
जन मानस के निम्मित ये प्रकृति नहीं चाहती नर संहार
बहुत बेबस किया जो हमने तो ही रौद्र रूप दिखाया !
पर हम मानव तो नहीं समझते नहीं संभलते क्यों कि
साबित शर्व शक्तिमन खुदको कारपाएंगे
जो हमने सबसे ख़तरनाक बम बनाया !
खुदको शर्व शक्तिमान साबित करने के होड़ में
हमने पुरे मानवजाति का ही कब्र खुदवाया !
जब नहीं बचेगा कोई जग में
तो कौन प्रकृति का छटा निहारेगा
यही सोच प्रकृति ने भी हमको बार बार समझाया !!
हमने किया है सिर्जन इस जग का मानव जाती के लिये
बिन मानव बाँझ कहलाएगी प्रकृति माँ तुम्हारी
कहते कहते मानो प्रकृति माँ के आँखों में आँसू आया !!!
— Written by Anil Sinha