October 28

मै एक गिलहरी प्रभु राम की

मै एक गिलहरी प्रभु राम की 
एक गिलहरी प्रभु राम की
सामर्थ नहीं ज्यादा फिर भी
स्नेह अपार प्रतिप्रभु राम की
मै एक गिलहरी प्रभु राम की।

कैसे पार करेंगे प्रभु सागर
ये चिंता ना हो प्रभु को मेरे
क्यों कर चिंता हरलु प्रभु का 
यही सोच मै चिंतित थी
 मै एक गिलहरी प्रभु राम की।

सिकन एक जो आजाये
मेरे प्रभु के मुख्यमंडल पर
तो धिक्कार हैं मेरे जीवन पर
यही सोच मै चिंतित थी 
मै एक गिलहरी प्रभु राम की।

वक्त नहीं कुछ ज्यादा हैं
सीता माता को छुड़ाने 
प्रभु को सागर पार तो जाना हैं
इस सागर पे बनरहे सेतु को
जल्दी बनवाने मे
आन पड़ी हैं मेरे श्रमदान की
मै एक गिलहरी प्रभु राम की।

दौड़ दौड़ कर, बार बार 
मुख मे लेकर मिट्टी के टुकड़े को
मै पाट रहीं थी सागर को
पर नजाने कैसे पड़ गई
नजर मुझपर मेरे प्रभु राम की
मै एक गिलहरी प्रभु राम की।

प्रभु आये मेरे पास स्नेह से मुझे सहलाये
मेरे जीवन को धन्य बनाये
मै तो हो गई प्रभु की दाश
मिट गई जीवन की प्यास 
मै एक गिलहरी प्रभु राम की
मै एक गिलहरी प्रभु राम की।।

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October 1

रोजगार !

देश के प्रगति के इंजन का ईंधन हैं रोजगार
जितना ईंधन डालेंगे उतना सरपट भागेगी सरकार !

शायद इन बातो से अबतक अनभिज्ञ रही हैं सरकार
तभी तो आज करोड़ो युवा शक्ति बैठे हैं बेकार !

चाहे भीड़ तंत्र जुटानी हो लाठी गोली खानी हो
सबने इनको ही आगे करके अपना मतलब साधा पर ये रहे बेकार !
पर नहीं मुहैया करवा पाये एक छोटा सा रोजगार !

बूढ़े माँ बाप बीमार पड़े हो बच्चे भूखे नंगे हो
एक मात्र कमाने वाला आज वो भी हो  बेरोजगार !

ऐसे ही मजबूर लोगों का फायदा गलत लोग उठाते हैं
चंद पैसो का लालच देकर इनसे गलत काम करवाते हैं !

फिर ये बेरोजगार लाचार बच्चे माओवादी आतंकी कहलाते हैं
और एक दिन इनकाउंंटर में मारे जाते हैं !

क्या देश का प्रधान मंत्री या मुख्य मंत्री हमको ये समझायेगा
किसने इन बच्चों को माओवादी आतंकी बनाया
ना देकर एक छोटी सी नौकरी इन्हे हथियार थमाया !

अगर देश का मुखिया नहीं निकालेगा इस बेरोजगारी का तुरंत कोई समाधान
तो देश कि युवा शक्ति ही शोला बनकर देश के ईट से ईट बजायेगा !
देश कि सृजनात्मक शक्ति ही देश का काल बनजायेगा !

अगर सच्चे मन से सच्चे नीयत से इस बेरोजगारी का देश
ढूंढती हैं समाधान तो राह निकल ही जायेगा !
आज का ये युवा शक्ति ही देश को विश्वा गुरु बनायेगा !

मिलजायेगा जो रोजगार सभी युवा शक्ति को तो
देश के प्रगति को मानो डबल इंजिन लग जायेगा !!

— Written by Anil Sinha

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October 1

घर घर कि कहानी !

नई नई परेशानी हर घर कि यही कहानी हैं
तिनका तिनका जोड़ रहें जो सबकी भूख मिटानी हैं |

टपक टपक कर छत से पानी गरीबी को मुँह चिढ़ा रही हैं
तार तार हुए हैं तन के कपडे उसपे भी पैबंद लगानी हैं |

रोम रोम क़र्ज़ में डूबा हैं उसपे कोढ बना कॅरोना हैं
बंद बंद हैं रोजी रोटी सब नहीं आय का कोई साधन हैं
बिलख बिलख बच्चे जो रोये उनकी तो भूख मिटानी हैं ||

पी पीकर वो तो अपना गम हल्का कर लेते हैं |
सिसक सिसक कर ममता समझाती हैं अपना गम हल्का करने से ज्यादा
जरूरी बच्चों कि भूख मिटानी हैं ||

रो रो कर बेटी बेहाल हुई हैं उसका गौना भी करवानी हैं
खट खट लाठी से कर बाबूजी जताते हैं उनके आँखों
का ऑपरेशन करवानी  है |

चीख चीख कर हालत बयां करती हैं हर घर कि
रो रो कर कई घरों में  बच्चों को पानी पीकर रहजानि हैं |

पानी पानी होकर शर्म से एक कटोरा चावल को पड़ोस में हाथ फैलानी हैं |
घर घर कि यहाँ यही कहानी हैं सबकी यही परेशानी हैं ||

— Written by Anil Sinha

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September 13

मै एक फूल !

मुझे गर्व है आपने जीवन पे
बेशक ये पल दो पल का है !

नाज मुझे है अपनी सुंदरता पे
बेशक़ ये पल दो पल का है !

मै इतराती हू अपनी खुसबू पे
बेशक़ ये पल दो पल का है !

क्यो गर्व मुझे है आपने जीवन पे
प्यार का इजहार हो या दूल्हे दुल्हन के गले का हार हो
हर जगह मेरी जरुरत है !

धन्य भाग्य होजाता है जब अर्पण की जाती हू प्रभु के
श्री चरणों पे
या फिर मुझे देश के वीर  शहीद जवानों पर
चढ़ाई जाती है !

जीवन सार्थक तभी लगता है जब काम किसी के आती हू
छणभंगुर है भले ही जीवन वर्षों का सुख दे जाती है !
मुझे गर्व है आपने जीवन पे
बेशक़ ये पल दो पल का है !!

— Written by Anil Sinha

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September 13

एक नन्हा सवेरा !

चिड़ियों कि चहचहाने के साथ
मुर्गे कि बांग लगाने के साथ
कोयल के मधुर गान के साथ
जन्म होता है एक नन्हें सवेरा का !

मंदिर के घंटीओ के साथ
मस्जिद के अजान के साथ
गुरूद्वारे के गुरदास के साथ
जन्म होता है एक नन्हें सवेरा का !

सागर के एक छोर से
पहाड़ो के ओट से
घने जंगलों के झुर्मुट से
लाल वस्त्र मे , जन्म होता है एक  नन्हें सवेरा का !

अब लोगों के दिनचर्या के साथ
पेट कि अगन मिटाने के साथ
अपने अपने कामों में लगने के साथ
उम्र बढ़ता है एक  नन्हें  सवेरा का !

बचपन के अठखेलियों के साथ
कई नादानियों के साथ
जवानी के रंगीनियों के साथ
वयस्क रूप होता है उस नन्हें  सवेरा का !

अपनी जिम्मेदारियों के साथ
जीवन के परेशानियों के साथ
माथे के सिलवटों के साथ
कुछ अधेड सा लगता है चेहरा उस नन्हें  सवेरा का !

अपने अंतिम कुछ जिम्मेदारियों के साथ
कुछ खोने कुछ पाने के एहसास के साथ
जीवन के कस्ती को किनारे लगाने के प्रयास के साथ
अब झुर्रियों के साथ बुढ़ापा झलकता है नन्हें सवेरा का !

अब लौटते चिड़ियों के कलरव के साथ
मंदिर के शंख नाद और संध्या आरती के साथ
मस्जिद के आखरी अजान के साथ
गिरजा और गुरूद्वारे के अंतिम पाठ  के साथ
आ गया है वक्त अंतिम विदाई का उस नन्हें सवेरा का !

काले चादर में लिपटने के साथ
चिड़ियों के कलरव बंद होने के साथ
कुत्तों के क्रंदन के आवाज के साथ
दूर जलते चिता के लऔ के साथ
कह गया लौट के आऊंगा करो इन्तेजार नन्हे सवेरा का !

— Written by Anil Sinha

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September 10

प्रकृति !

क्या कुछ नहीं दिया प्रकृति ने मानवता के हित को
ये नदी नाले पहाड़ व पर्वत तथा घनेरे जंगल की छाया 
जीने की सारी मूलभूत सुविधाओं को देकर
प्रकृति ने तो अपना प्रकृति  धर्म हर हाल निभाया !

नीले अम्बर पे सूरज चाँद सितारे तथा
नौ ग्रहो को उसने है सजाया !
फूल फलों से सजा के
धरती के बगिया को मानो स्वर्ग बनाया !

क़द्र नहीं हमने की इसकी
नये शहर बसाने को पहले जंगल को कटवाया !
फिर भी चैन ना आया हमको तो
पूरे विश्व में जगह जगह पे  परमाणु विस्फोट कराया !

शुद्ध करें जो जीव  हमारे जल को
कल कारखानों के गंदे रसायनो से उनको भी मरवाया 
छिपा रखी थी जो खनिज सम्पदा धरती आपने गर्भ में
खोद निकाल हमने वो सब धरती को कमजोर बनाया !

जब जब किया जुल्म धरती पर हमने
प्रकृति ने अपना आक्रोश जताया !
मूक प्रकृति कर भी क्या सकती थी
फिर भी सांकेतिक भाषा कभी बाढ़ कभी भूकंप
के रूप में अपना रौद्र रूप दिखाकर हमको समझाया !

समझ, नासमझ बने रहें हम
उलटे आपदा प्रबंधन टीम बनाया !
जन मानस के निम्मित ये प्रकृति नहीं चाहती नर संहार  
बहुत बेबस किया जो हमने तो ही रौद्र रूप दिखाया !

पर हम मानव तो नहीं समझते नहीं संभलते क्यों कि
साबित शर्व शक्तिमन खुदको  कारपाएंगे
जो हमने सबसे ख़तरनाक बम बनाया !
खुदको शर्व शक्तिमान साबित करने के होड़ में
हमने पुरे मानवजाति का ही कब्र  खुदवाया !

जब नहीं बचेगा कोई जग में
तो कौन प्रकृति का छटा निहारेगा
यही सोच प्रकृति ने भी हमको बार बार समझाया !!

हमने किया है सिर्जन इस जग का मानव जाती के लिये
बिन मानव बाँझ कहलाएगी प्रकृति माँ तुम्हारी
कहते कहते मानो प्रकृति माँ के आँखों में आँसू आया !!!

— Written by Anil Sinha

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September 2

आप बेमिसाल हो !

आप बेमिसाल हो
हम सबके लिये मिसाल हो !

मुसीबतों पे ढाल हो
दुश्मन के लिये तलवार हो !

गरीब की मसीहा हो
अमीर आप पैदायशी  हो !

राहों पे आपके  फूल बिछे हो 
छोड़ उन्हें आप काँटों पे चलती  हो !

काँटों को भी आप फूल बताती हो
चलके उन राहो पे आप ये जताती हो !

नहीं असंभव कुछ दुनिया में ये बताती हो
बातो से नहीं खुद संभव करके दिखलाती हो !

घर की रौनक आप ही हो
आप ही  इसकी बाती  हो !

हर हालत में घर को खुशनुमा बनती हो
कैसे जीते है जीवन ये हमें बताती हो !

कभी सोचता हू आप क्या हो?
बच्चों की दुनिया की सबसे अच्छी माँ हो
दुनियाँ  के हर रिश्ते पे आप खरी उतरती हो !

घर पे आये मुसीबतों पे आप दुर्गा लगती हो
जीवन के मूलमंत्र बताने को शरस्वति लगती हो
धनोपार्जन की बात जो हो तो आप लक्ष्मी लगती हो !

अब गर कोई पूछे मुझसे मेरे लिये आप क्या हो
मेरे लिये तो वरदान स्वरुप अल्लादीन का चिराग हो !

आप बेमिसाल हो !!!

— Written by Anil Sinha for her beloved wife Anjali Sinha

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August 12

जीवन शारथी !

हे कान्हा तुम मेरे जीवन शारथी बनजाओ
कैसे जीते जीवन का  महाभारत, ये तुम मुझे बताओ !

मेरे मन की विशाल कौरव सेना खड़ी है मुझे हराने को
पर मेरे अपने पांच पांडव, काम क्रोध मोह लोभ अहंकार
पर नहीं है मेरा ही अधिकार,
कैसे हो अधिकार अपनों पर, ये तुम मुझे बताओ  !

अपने ही जो ना हो अपने वश मे
तो कैसे लड़ने को दुश्मन से
अपना धनुष उठाऊँ, ये तुम मुझे बताओ  !

असमंजस मे है मेरा अर्जुन
प्रभु तुम अपना विश्वरूप  दिखाओ
खड़े खड़े जीवन के रणभूमि मे जीवन का सार बताओ !

नहीं आहत हो कोई अपना  शब्द वाणो से मेरे
फिरभी नागफांस मे बँधजाये वो मेरे
कैसे भेदे जीवन के चक्रब्यूह को ये राज मुझे बताओ  !
हे कान्हा तुम मेरे जीवन शारथी बन जाओ

कैसे जीते जीवन का महाभारत, ये तुम मुझे बताओ  !

— Written by Anil Sinha

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August 9

जीवन एक रंगमंच !

जीवन के  इस रंगमंच पर
सबको अपना अभिनय कर जाना है !

कोई बना  राजा यहाँ पर
तो कोई  बना भिखारी !

कोई बना चोर यहाँ पर
तो कोई बना सिपाही !

जिसको चुना प्रभु ने जिस अभिनय के काबिल
उसको उस अभिनय को, सर्वोत्तम  कर जाना है !

ना कोई संवाद है अपना, ना कोई है भाव
हमें तो बस रटे   रटाये संवाद -भाव को
जिवंत कर, अपना अभिनय कर जाना है !

अब बहुतो के जेहन  मे बात जरूर ये आएगी
जब सब कुछ है ये प्रभु कि माया !

तो क्यों खेले हम चोर सिपाही
छोड़ भिखारी का अभिनय राजा ही  बन जाते है !

अब बात चली है भगवन पे तो वो हॅसकर तुम्हे बताते हैं !

क्या कोई पिता चाहेगा एक पुत्र हो राजा उसका
दूजा बने चोर या कोई बने भिखारी?
पिता तो सभी आपने पुत्रो को संपन्न बनाना चाहेगा !

मनुष्य के नीयत और कर्म ही उससे सब करवाते है
जो मनुष्य करता है कर्म वैसा ही वो पता है !

यही बात तो हम सबको
धरती के इस रंगमंच पे दिखाते है !

जैसा कर्म करोगे वैसा
फल देगा भगवन !

तो कर्म को आपने बदलो
समुचित पात्र  और संवाद तुम्हे मिलजायेंगे !

चलकर  उन्ही  राह  पर,
तुमको आपने मंजिल मिलजायेंगे !!

जीवन के इस  रंगमंच पर सबको
अपना अभिनय कर जाना है !

— Written by Anil Sinha

August 6

क्या चाहता है ये दिल ?

यह कविता आदरणीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को समर्पित है !

दिन के उजाले में भी
जा कर तंग गलियों में
रोशनी तलाशता है दिल
क्या चाहता है ये दिल !

शाही जिंदगी में भी
जो नींद ना हो आँखों में
जमी पे सोना चाहता है दिल
क्या चाहता है ये दिल !

लजीज खाने पड़े हो सामने
पर तलब उन खानो की नहीं
सूखी रोटी चबाना चाहता है दिल
क्या चाहता है ये दिल !

आसमा के बुंलदियों के बाद
जमी को क्यों निहारता है
जब मालूम था आसमा के लिए जमी को छोड़नी होगी
क्या चाहता है ये दिल !

ऐसा क्यों चाहे ये दिल ?

कैसे जिए हम शाही जिंदगी
नींद कैसे हो आँखों में
जहाँ करोड़ों अपनों को
एक छत्त भी नहीं नसीब है !
कैसे तलब हो शाही खाने की
जहाँ करोड़ों भूखे सोते है !

तो अब क्या चाहता है ये दिल ?

दिल चाहता है
दिन के उजाले में
वो तंग गलियां भी उजाली हो !
सबके सरपे पक्का छत अपना हो
सबके लिए दो वक़्त के खाने हो
सब अन्नदाता खुशहाल हमारे हो !!

तो अब क्या सोचता है करने को ये दिल ?

हमको ऐसा कुछ करना है की
ना कोई होगा बेरोजगार यहाँ पर
ना मांगेगा कोई भीख यहाँ पर
आत्मनिर्भर बने ये देश हमारा
फिर सोने की चिड़िया कहलाये !

अंत में

गर मिलजाए मौका एक ऐसा
इस धरती का कर्ज चुकाने को
दुश्मन के गोली खाने को
पहला छाती ये अपना हो !

– Written by Anil Sinha

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