August 6

क्या चाहता है ये दिल ?

यह कविता आदरणीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को समर्पित है !

दिन के उजाले में भी
जा कर तंग गलियों में
रोशनी तलाशता है दिल
क्या चाहता है ये दिल !

शाही जिंदगी में भी
जो नींद ना हो आँखों में
जमी पे सोना चाहता है दिल
क्या चाहता है ये दिल !

लजीज खाने पड़े हो सामने
पर तलब उन खानो की नहीं
सूखी रोटी चबाना चाहता है दिल
क्या चाहता है ये दिल !

आसमा के बुंलदियों के बाद
जमी को क्यों निहारता है
जब मालूम था आसमा के लिए जमी को छोड़नी होगी
क्या चाहता है ये दिल !

ऐसा क्यों चाहे ये दिल ?

कैसे जिए हम शाही जिंदगी
नींद कैसे हो आँखों में
जहाँ करोड़ों अपनों को
एक छत्त भी नहीं नसीब है !
कैसे तलब हो शाही खाने की
जहाँ करोड़ों भूखे सोते है !

तो अब क्या चाहता है ये दिल ?

दिल चाहता है
दिन के उजाले में
वो तंग गलियां भी उजाली हो !
सबके सरपे पक्का छत अपना हो
सबके लिए दो वक़्त के खाने हो
सब अन्नदाता खुशहाल हमारे हो !!

तो अब क्या सोचता है करने को ये दिल ?

हमको ऐसा कुछ करना है की
ना कोई होगा बेरोजगार यहाँ पर
ना मांगेगा कोई भीख यहाँ पर
आत्मनिर्भर बने ये देश हमारा
फिर सोने की चिड़िया कहलाये !

अंत में

गर मिलजाए मौका एक ऐसा
इस धरती का कर्ज चुकाने को
दुश्मन के गोली खाने को
पहला छाती ये अपना हो !

– Written by Anil Sinha


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Posted August 6, 2020 by anilsinha in category "Poems

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