August 12

जीवन शारथी !

हे कान्हा तुम मेरे जीवन शारथी बनजाओ
कैसे जीते जीवन का  महाभारत, ये तुम मुझे बताओ !

मेरे मन की विशाल कौरव सेना खड़ी है मुझे हराने को
पर मेरे अपने पांच पांडव, काम क्रोध मोह लोभ अहंकार
पर नहीं है मेरा ही अधिकार,
कैसे हो अधिकार अपनों पर, ये तुम मुझे बताओ  !

अपने ही जो ना हो अपने वश मे
तो कैसे लड़ने को दुश्मन से
अपना धनुष उठाऊँ, ये तुम मुझे बताओ  !

असमंजस मे है मेरा अर्जुन
प्रभु तुम अपना विश्वरूप  दिखाओ
खड़े खड़े जीवन के रणभूमि मे जीवन का सार बताओ !

नहीं आहत हो कोई अपना  शब्द वाणो से मेरे
फिरभी नागफांस मे बँधजाये वो मेरे
कैसे भेदे जीवन के चक्रब्यूह को ये राज मुझे बताओ  !
हे कान्हा तुम मेरे जीवन शारथी बन जाओ

कैसे जीते जीवन का महाभारत, ये तुम मुझे बताओ  !

— Written by Anil Sinha

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August 9

जीवन एक रंगमंच !

जीवन के  इस रंगमंच पर
सबको अपना अभिनय कर जाना है !

कोई बना  राजा यहाँ पर
तो कोई  बना भिखारी !

कोई बना चोर यहाँ पर
तो कोई बना सिपाही !

जिसको चुना प्रभु ने जिस अभिनय के काबिल
उसको उस अभिनय को, सर्वोत्तम  कर जाना है !

ना कोई संवाद है अपना, ना कोई है भाव
हमें तो बस रटे   रटाये संवाद -भाव को
जिवंत कर, अपना अभिनय कर जाना है !

अब बहुतो के जेहन  मे बात जरूर ये आएगी
जब सब कुछ है ये प्रभु कि माया !

तो क्यों खेले हम चोर सिपाही
छोड़ भिखारी का अभिनय राजा ही  बन जाते है !

अब बात चली है भगवन पे तो वो हॅसकर तुम्हे बताते हैं !

क्या कोई पिता चाहेगा एक पुत्र हो राजा उसका
दूजा बने चोर या कोई बने भिखारी?
पिता तो सभी आपने पुत्रो को संपन्न बनाना चाहेगा !

मनुष्य के नीयत और कर्म ही उससे सब करवाते है
जो मनुष्य करता है कर्म वैसा ही वो पता है !

यही बात तो हम सबको
धरती के इस रंगमंच पे दिखाते है !

जैसा कर्म करोगे वैसा
फल देगा भगवन !

तो कर्म को आपने बदलो
समुचित पात्र  और संवाद तुम्हे मिलजायेंगे !

चलकर  उन्ही  राह  पर,
तुमको आपने मंजिल मिलजायेंगे !!

जीवन के इस  रंगमंच पर सबको
अपना अभिनय कर जाना है !

— Written by Anil Sinha

August 6

क्या चाहता है ये दिल ?

यह कविता आदरणीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को समर्पित है !

दिन के उजाले में भी
जा कर तंग गलियों में
रोशनी तलाशता है दिल
क्या चाहता है ये दिल !

शाही जिंदगी में भी
जो नींद ना हो आँखों में
जमी पे सोना चाहता है दिल
क्या चाहता है ये दिल !

लजीज खाने पड़े हो सामने
पर तलब उन खानो की नहीं
सूखी रोटी चबाना चाहता है दिल
क्या चाहता है ये दिल !

आसमा के बुंलदियों के बाद
जमी को क्यों निहारता है
जब मालूम था आसमा के लिए जमी को छोड़नी होगी
क्या चाहता है ये दिल !

ऐसा क्यों चाहे ये दिल ?

कैसे जिए हम शाही जिंदगी
नींद कैसे हो आँखों में
जहाँ करोड़ों अपनों को
एक छत्त भी नहीं नसीब है !
कैसे तलब हो शाही खाने की
जहाँ करोड़ों भूखे सोते है !

तो अब क्या चाहता है ये दिल ?

दिल चाहता है
दिन के उजाले में
वो तंग गलियां भी उजाली हो !
सबके सरपे पक्का छत अपना हो
सबके लिए दो वक़्त के खाने हो
सब अन्नदाता खुशहाल हमारे हो !!

तो अब क्या सोचता है करने को ये दिल ?

हमको ऐसा कुछ करना है की
ना कोई होगा बेरोजगार यहाँ पर
ना मांगेगा कोई भीख यहाँ पर
आत्मनिर्भर बने ये देश हमारा
फिर सोने की चिड़िया कहलाये !

अंत में

गर मिलजाए मौका एक ऐसा
इस धरती का कर्ज चुकाने को
दुश्मन के गोली खाने को
पहला छाती ये अपना हो !

– Written by Anil Sinha

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August 1

जिंदगी का खेल

जिंदगी के खेल में 

जिंदगी का मुकाम बदल गया !

जिंदगी के सफ़र में 

जिंदगी का खोटा सिक्का चल गया !

जिंदगी के तलाश में 

जिंदगी का मायना बदल गया !

जिंदगी के परीक्षा में 

जिंदगी का खरा फेल हो गया !

जिंदगी के दाव पेंच में 

जिंदगी का प्यादा वजीर बन गया !

जिंदगी के तपिष से 

जिंदगी का चायवाला PM बन गया !

जिंदगी के माखौल से 

जिंदगी का राजकुमार फ़क़ीर बन गया !

जिंदगी के खेल में 

जिंदगी का मजाक बनाने वाला बर्बाद हो गया !!

– Written by Anil Sinha

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August 1

ढूँढती निगाहें !

तालियों के गङ्गाहट के बीच
ढूँढती है निगाहें
उन हाथो को जो बज नहीं रहे थे !

दर्द होता है देखकर कि
जो हाथ बंधे हुए थे
वो तो अपनों के ही थे !

हमने तो ससम्मान बुलाकर उनको
अग्रिम पंती में बिठाया था !

हमने तो सोचा था
हासिल कर इस मुकाम को
हम उनका मान बढ़ाएंगे !

पर ना जाने क्यों अब
उनके चेहरे मुरझाये थे !

बार बार हम सोच रहे थे
क्या खता हुई है हमसे
हमने तो वो सब कुछ की
जो बन सकता था हमसे
फिर भी ना जाने वो
क्यों आज बने बेगाने थे !

ढूँढती है निगाहे
लाखो अपनों के बीच
तालियों के गङ्गाहट के बीच
सिमटे बैठे कुछ बेगाने थे !!

– Written by Anil Sinha

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July 31

दर्द का एहसास !

दर्द का एहसास जरुरी है 

है सीने  में एक दिल 

ये बतलाना जरुरी है !

है आँखों में नमी 

बहा कर आंसू 

ये बतलाना जरुरी है !

कर रक्षा अबला नारी का 

मर्द है हम 

ये बतलाना जरुरी है !

जिनके हाथ पकड़ बड़े हुए है 

ना छोड़ेंगे उन बूढ़े हाथो को

ये बिश्वास दिलाना जरुरी है !  

जिस धरती पे हमने जन्म लिया है 

उस धरती का हमपे क़र्ज़ बना है 

ये क़र्ज़ चुकाना जरुरी है !

भारत माता के पुत्र सभी हम 

उठकर जाती धर्म के भाव से ऊपर 

रक्त हमारा होगा तुझपे अर्पण 

ये सपथ हमारा जरुरी है !

हर भारत वासी के अंदर 

देश प्रेम की 

ये भावना बहुत जरुरी है !

दर्द का एहसास जरुरी है 

है सीने में एक दिल 

ये बतलाना जरुरी  है !

– Written by Anil Sinha

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July 31

मन का दीप !

अंकित कर अपने अनुभव को 

मन का दीप जलाओ तुम !

हो नहीं सकेगा हमसे

इस डर  को मन से दूर भगाओ तुम !

नहीं असम्भव कुछ दुनिया में 

ये साबित कर दिखलाओ तुम !

ईश्वर ने दी है सारी शक्ति तुमको 

खुद को ये सारी बाते समझाओ तुम !

जो जान गये पहचान गये खुद को 

तो अनहोनी को होनी कर दिखलाओ तुम ! 

क्या चाहते हो ये पूछो अपने दिल से 

चल कर उसी राह पे अपनी मंजिल पाओ तुम !

बस एक बात समझनी है तुम को 

आये हो जिस कार्य को वो कर जाओ तुम !

ईश्वर ही नहीं माँ बाप और राष्ट्र को 

अपने कार्य से सम्मान दिलाओ तुम !

अंकित कर अपने अनुभव को 

मन का दीप जलाओ तुम !

– Written by Anil Sinha

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July 26

जलन !

औरों के प्रति जलन
खुद आपको जलाती है !
आपके खुशनुमा
जिंदगी को
नर्क बनाती है !!

हासिल कुछ भी
नहीं होगा
जलन से तुम्हारे !
नदी के बहाव को
क्या रोक पाएंगे
उलटे थंब तुम्हारे !!

हमने देखा है
लोगों को
औरो के खुशियों
पे जलते हुए !

खुशियां उनकी भी
कोई कम ना थी !
जिंदगी में उनके
कोई गम ना थी !!

गम थी तो उन्हें
औरों के तरक्की का !
इसी गम में वो
ता उम्र सुलगते रहे !
अपने ही जिंदगी को
घुन लगाते रहे वो !!

अनेको बिमारियों को
गले लगाते गए वो !
इलाज बिमारिओं का
कराते रहे वो !
फिर भी जलन की आग
अंदर सुलगाते रहे वो !!

जिसे जो पाना था
पाते गए वो !
पर जलने वाले वो
रफ्ता रफ्ता मौत को
करीब बुलाते गए वो !!

– Written by Anil Sinha

July 26

मुसकिलें !

मुसकिलें होती नहीं आसान
महज आंसूं बहाने से !

ना होती है आसान
गले में फन्दा लगाने से !!

समस्या काली रात है तो
समाधान सुबह सवेरा है !

यह तो प्रकृति का नियम है
काली रात को हटनी है
सुबह सवेरा होनी है
बस धीरज हमको धरनी है !!

वक़्त हर मुसकिल का
लाती है समाधान !!

ज़िंदगी एक सफर है
फूल ही नहीं कांटे
भी मिलेंगे राह में !

हौसला हम जो रखेंगे
कांटें भी राह के
एक दिन फूल बन जायेंगे !!

ज़िंदगी होती नहीं आसान
पर हौंसला देख कर हमारे
मुसकिलें भी सर झुकायेंगे !!

– Written by Anil Sinha

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July 10

एक मुलाकात ज़िंदगी से

ज़िंदगी के सफर में
एक दिन ज़िंदगी से
मुलाकात हो गयी !!

जल्दी में थी वो
पर चलते चलते
कुछ बात हो गयी !

मैंने पूछा ज़िंदगी से
हमे तो आप जान से ज्यादा प्यारी हो
फिर क्यों आप अक्सर मुझे रुलाती हो !!

हंसकर बोली ज़िंदगी
मैं भी तो तुमसे उतना ही प्यार करती हूँ
तभी तो ज़िन्दगी के मायने सिखाती हूँ !!

कभी हसाती हूँ
कभी रुलाती हूँ !
कभी फूलों पे
तो कभी
काँटों पे चलाती हूँ !!

यह ज़िंदगी तो
धुप छाओं की है !
कभी ठंडी छाओं होगी
तो कभी कड़ी धुप होगी !

बस जीना तो
हर हाल में है
मुस्कुराहटें जो चेहरे पे बनी रहे
तो ज़िंदगी आसान होगी !!

– Written by Anil Sinha