November 2

शाख से टूटे पत्ते !

शाख से टूटे पत्ते हैं हम
अब नहीं अस्तित्व हमारा हैं !

कोई कहता हैं कचड़ा हैं हम
कोई हमें जलाता हैं !

कोई कहता था वायु दाता
कोई कहता था हरियाली !

टूट के अपने मूल शाख से
हम कैसे बन गये पराली !

अब समझ में आया हमको
जब तक हम जुड़ेहुए हैं अपने शाखों से
तब तक अस्तित्वा हमारा हैं !

देखो  लैला के जुल्फ मजनू को कितना प्यारा हैं
उसके टूटे जुल्फ खाने में क्या उतना ही प्यारा हैं !

आसमां के तारे हमको कितने अच्छे लगते हैं
उनसे जो टूटे उल्का बनकर अपना अस्तित्वा गंवाते हैं !

नदियाँ झरनों को ही अगर देख ले हम
उनसे निकले शाखा अक्सर नाला बनकर अपना अस्तित्वा गंवाते हैं !

जो भी हो जैसे भी हो ये वतन ही शाख तुम्हारा हैं
कुछ दिनों के लिये बाहर जाना पढ़ाई और नौकरी
के खातिर कोई गुनाह नहीं हैं !

पर अपने ही शाख का जड़े काटना दुश्मन से हाथ मिलाकर
ये गुनाह तुम्हारा हैं !

अपने शाख का टूटा पत्ता बनकर
अब नहीं अस्तित्व तुम्हारा हैं !

एक बात प्रकृति से सीखो प्रकृति को देखो
क्या इनमे से कोई भी
गद्दारी अपने शाख से करता हैं?

फिर भी अगर  गलती से भी गद्दारी कोई करता हैं
प्रकृति माफ़ उसे नहीं करती
कुत्ते कि मौत वो मरता हैं !

मजहब के नाम पे बहुतो ने भड़काया होगा
पर एक बार हाथ रख अपने जिगर से पूछो
क्या इसी साख ने पालपोस कर तुमको नहीं बड़ा किया !

जिस भी शाख पे जन्म हमारा होता हैं
वो ही रब वो खुदा हमारा
वो ही मजहब हमारा होता हैं !

अब ऐसे रब खुदा
और मजहब के शाख से
होकर अलग क्या अस्तित्वा हमारा होगा !!!

— Written by Anil Sinha


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Posted November 2, 2020 by anilsinha in category "Poems

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