अभाव ग्रस्त या तृप्त ?
अभाव ग्रस्त हो या तृप्त हो,मन इसका परिचायक हैं!
भाव अगर अभाव का हैं तो जीवन सूना सूना हैं!
तृप्त भाव अगर हैं तो जीवन का बगिया खिला हुआ हैं!
अभाव का भाव हीं दुख कि जननी हैं!
सुख की दाता तृप्ति हैं!
कुबेर का सारा धन पाकर भी कुछ लोग सदा दुखी रहा करते हैं!
वही गुदड़ी में सोने वाला राजा खुद को कहता हैं!
दुनियाँ का कोई धन दौलत ऐशो आराम का साधन
सुख का पैमाना नहीं बन सकता हैं!
सब कुछ हासिल करके भी कई मन खुशियों को तरसता हैं!
हममे से कितनो ने सोचा हैं आखिर ऐसा क्यों होता हैं!
रात दिन गवां कर अपना धन दौलत वैभव को पाया हैं!
वो सारा कुछ क्यों कर हमको मन का सुख ना दे पाया हैं!
सच पूछे तो जिन चिझो को सुख का साधन समझा था
वक्त गवां कर हमने पाया यही दुखो के कारण हैं !
गलत काम कर जिन चिझो को मैंने अपने घर लाया हैं
उन्ही चिझो ने आज मेरा सारा चैन चुराया हैं!
मानो ये ऐशो आराम के साधन सुखचैन बेचकर पाया हैं!
कहते हैं अभाव का भाव जिसमे जितना कम होता हैं
वो इंसान उतना हीं सुखी होता हैं क्यों की वो
तृप्ति सुख की दाता हैं!
अभाव ग्रस्त हो या तृप्त हो, मन इसका परिचायक हैं !!!
— Written by Anil Sinha