घर घर कि कहानी !
नई नई परेशानी हर घर कि यही कहानी हैं
तिनका तिनका जोड़ रहें जो सबकी भूख मिटानी हैं |
टपक टपक कर छत से पानी गरीबी को मुँह चिढ़ा रही हैं
तार तार हुए हैं तन के कपडे उसपे भी पैबंद लगानी हैं |
रोम रोम क़र्ज़ में डूबा हैं उसपे कोढ बना कॅरोना हैं
बंद बंद हैं रोजी रोटी सब नहीं आय का कोई साधन हैं
बिलख बिलख बच्चे जो रोये उनकी तो भूख मिटानी हैं ||
पी पीकर वो तो अपना गम हल्का कर लेते हैं |
सिसक सिसक कर ममता समझाती हैं अपना गम हल्का करने से ज्यादा
जरूरी बच्चों कि भूख मिटानी हैं ||
रो रो कर बेटी बेहाल हुई हैं उसका गौना भी करवानी हैं
खट खट लाठी से कर बाबूजी जताते हैं उनके आँखों
का ऑपरेशन करवानी है |
चीख चीख कर हालत बयां करती हैं हर घर कि
रो रो कर कई घरों में बच्चों को पानी पीकर रहजानि हैं |
पानी पानी होकर शर्म से एक कटोरा चावल को पड़ोस में हाथ फैलानी हैं |
घर घर कि यहाँ यही कहानी हैं सबकी यही परेशानी हैं ||
— Written by Anil Sinha