October 17

नारी का सम्मान करो !

कौन हैं नारी पहले समझो
फिर उसका सम्मान करो !

नारी जननी हैं नारी माता हैं
झुक कर उसे प्रणाम करो !

नारी रूप हैं बहना का
बहना के प्यार उसके राखी का सम्मान करो !

विधि विधान से वरण किया जिस नारी को
छोड़ आयी जो अपने आंगन को सिर्फ उस  नारी को
पत्नी रूप में स्वीकार करो !

पति पत्नी के प्यार स्वरुप
एक नन्ही कलि घर आपके आई
उस नारी को बेटी रूप में स्वीकार करो !

चाहे जिस रूप में हो नारी
हर रूप में ममता स्नेह प्यार के रंगों से
भरा हैं आपके जीवन को
उस नारी का सम्मान करो !

नारी फूल हैं दुनिया के बगिया का उसकी ममता स्नेह व प्यार उसकी सुंदरता हैं 
उसके सुंदरता का सम्मान करो !

नारी का सम्मान उस माली का सम्मान हैं
जिसने इस दुनियाँ के बगिया को
सुन्दर फूलो से सजाया हैं
उस रचना कर्ता  के रचना का सम्मान करो !

ईश्वर के उस बगिया के हम सब चौकीदार हैं
जीवन में जिस पदपर भी हो
इस चौकीदारी का भी कार्य करो !

तब क्या ये संभव होगा
हम सब चौकीदारों के होते
कोई एक दरिंदा आये
फूल तोड़ हमारे बगिया का उसे मसल कर जाये
अपने प्राण गवां कर भी उसका तुम प्रतिकार करो !

माँ बेटी बहन व पत्नी ये फूल हमारे बगिया के हैं
इन फूलों को जाति धर्म समाज में ना बांटो
ये तो बस सुंदरता हैं बगिया का यही धर्म हैं इनका
इस सुंदरता का सम्मान करो नारी का सम्मान करो !!!

— Written by Anil Sinha

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October 1

रोजगार !

देश के प्रगति के इंजन का ईंधन हैं रोजगार
जितना ईंधन डालेंगे उतना सरपट भागेगी सरकार !

शायद इन बातो से अबतक अनभिज्ञ रही हैं सरकार
तभी तो आज करोड़ो युवा शक्ति बैठे हैं बेकार !

चाहे भीड़ तंत्र जुटानी हो लाठी गोली खानी हो
सबने इनको ही आगे करके अपना मतलब साधा पर ये रहे बेकार !
पर नहीं मुहैया करवा पाये एक छोटा सा रोजगार !

बूढ़े माँ बाप बीमार पड़े हो बच्चे भूखे नंगे हो
एक मात्र कमाने वाला आज वो भी हो  बेरोजगार !

ऐसे ही मजबूर लोगों का फायदा गलत लोग उठाते हैं
चंद पैसो का लालच देकर इनसे गलत काम करवाते हैं !

फिर ये बेरोजगार लाचार बच्चे माओवादी आतंकी कहलाते हैं
और एक दिन इनकाउंंटर में मारे जाते हैं !

क्या देश का प्रधान मंत्री या मुख्य मंत्री हमको ये समझायेगा
किसने इन बच्चों को माओवादी आतंकी बनाया
ना देकर एक छोटी सी नौकरी इन्हे हथियार थमाया !

अगर देश का मुखिया नहीं निकालेगा इस बेरोजगारी का तुरंत कोई समाधान
तो देश कि युवा शक्ति ही शोला बनकर देश के ईट से ईट बजायेगा !
देश कि सृजनात्मक शक्ति ही देश का काल बनजायेगा !

अगर सच्चे मन से सच्चे नीयत से इस बेरोजगारी का देश
ढूंढती हैं समाधान तो राह निकल ही जायेगा !
आज का ये युवा शक्ति ही देश को विश्वा गुरु बनायेगा !

मिलजायेगा जो रोजगार सभी युवा शक्ति को तो
देश के प्रगति को मानो डबल इंजिन लग जायेगा !!

— Written by Anil Sinha

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October 1

घर घर कि कहानी !

नई नई परेशानी हर घर कि यही कहानी हैं
तिनका तिनका जोड़ रहें जो सबकी भूख मिटानी हैं |

टपक टपक कर छत से पानी गरीबी को मुँह चिढ़ा रही हैं
तार तार हुए हैं तन के कपडे उसपे भी पैबंद लगानी हैं |

रोम रोम क़र्ज़ में डूबा हैं उसपे कोढ बना कॅरोना हैं
बंद बंद हैं रोजी रोटी सब नहीं आय का कोई साधन हैं
बिलख बिलख बच्चे जो रोये उनकी तो भूख मिटानी हैं ||

पी पीकर वो तो अपना गम हल्का कर लेते हैं |
सिसक सिसक कर ममता समझाती हैं अपना गम हल्का करने से ज्यादा
जरूरी बच्चों कि भूख मिटानी हैं ||

रो रो कर बेटी बेहाल हुई हैं उसका गौना भी करवानी हैं
खट खट लाठी से कर बाबूजी जताते हैं उनके आँखों
का ऑपरेशन करवानी  है |

चीख चीख कर हालत बयां करती हैं हर घर कि
रो रो कर कई घरों में  बच्चों को पानी पीकर रहजानि हैं |

पानी पानी होकर शर्म से एक कटोरा चावल को पड़ोस में हाथ फैलानी हैं |
घर घर कि यहाँ यही कहानी हैं सबकी यही परेशानी हैं ||

— Written by Anil Sinha

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September 2

आप बेमिसाल हो !

आप बेमिसाल हो
हम सबके लिये मिसाल हो !

मुसीबतों पे ढाल हो
दुश्मन के लिये तलवार हो !

गरीब की मसीहा हो
अमीर आप पैदायशी  हो !

राहों पे आपके  फूल बिछे हो 
छोड़ उन्हें आप काँटों पे चलती  हो !

काँटों को भी आप फूल बताती हो
चलके उन राहो पे आप ये जताती हो !

नहीं असंभव कुछ दुनिया में ये बताती हो
बातो से नहीं खुद संभव करके दिखलाती हो !

घर की रौनक आप ही हो
आप ही  इसकी बाती  हो !

हर हालत में घर को खुशनुमा बनती हो
कैसे जीते है जीवन ये हमें बताती हो !

कभी सोचता हू आप क्या हो?
बच्चों की दुनिया की सबसे अच्छी माँ हो
दुनियाँ  के हर रिश्ते पे आप खरी उतरती हो !

घर पे आये मुसीबतों पे आप दुर्गा लगती हो
जीवन के मूलमंत्र बताने को शरस्वति लगती हो
धनोपार्जन की बात जो हो तो आप लक्ष्मी लगती हो !

अब गर कोई पूछे मुझसे मेरे लिये आप क्या हो
मेरे लिये तो वरदान स्वरुप अल्लादीन का चिराग हो !

आप बेमिसाल हो !!!

— Written by Anil Sinha for her beloved wife Anjali Sinha

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August 26

एक अतृप्त आत्मा !

मैने तो अपने आकांक्षाओं की उड़ान भरी ही थी
की  मेरे पँख काट दिये गये, इल्जाम मुझपर ही लगाई
मैंने ही अपने पंखो को काटी थी !

क्या सोच सकते हैं आप
मेरी तो उड़ान अभी काफ़ी लम्बी थी
तो क्यों और कैसे
उड़ते हुए मैंने अपनी ही पँख काटी थी !

दलीले उनकी भी कम ना थी
बताया मै तो पागल हो गया था
ऐसे हालत में खुदखुशी लाजमी थी !

मान ली सबने उनकी दलीले
खुद मैंने ही अपनी जान गँवाई थी
बेशक कुछ अजीज और बूढ़े बाप ने आवाज उठाई थी!

जानते थे वो मै कायर नहीं था
ना ही मेरी ऐसी कोई मज़बूरी थी
हाँ मारने वाले को मुझे मारना उनकी मज़बूरी थी !

उनके हरकतो को,  पापो को हमने जो देखी थी
बड़े लोग थे वो
खुद को बचाने के लिये मुझे मारना उनकी मज़बूरी थी !

उन बेगानों ने मुझे मारने की साजिश तो की  थी
पर उनसे मुझे कोई  शिकायत नहीं थी
शिकायत तो मुझे सिर्फ अपने जानू से हैं
जो साजिसे सरगना थी !

पिलाके नींद की दवा आगोश में सुलाई थी
बोझिल निगाहों से देखता हू उसे
ऑंखें फटी रह गई थी
जब गिलाफ मेरे चेहरे पे उसने दबाई थी !

मै तड़प कर उठना चाहा उसे सबक सिखाना  चाहा
पर सबने मेरे हाथ पैर पकड़ रखी थी !

दम घुट रहा था, मै मौत के आगोश में जारहा था
जानू की मीठी आवाज़,
मरनेपर पंखेसे लटका देना,  आरही थी !

मै, नहीं ! मेरी आत्मा जानू को छोड़ने उसके घर गई थी
जानू अपने भाई को बता रही थी
मर गया हू मै पर मेरे मरने की खबर कल आएगी
उससे पहले निकाललो सारे पैसे जो मेरे बैंको में थी !

मेरे लिये ये बाते अब बेमानी थी
छोड़ को उसको वापस जो आया
मेरे शव को पंखे से लटकाई जा चुकी थी
सबूत सारे गुनाह की मिठाई जा चुकी थी !

दूसरे दिन जानू को रोता देख मुझे रुलाई आई थी
तब समझ आया ना ही मेरे आँख  हैं, ना जानू का दिल
सचमुच सा रोना रोकर एक्टिंग का किरदार निभाई थी !

कुछ पल को तो मै भी भौचक्का था
जिसने खुद मारा था मुझको
वो खुदही मेरे कातिल को ढूंढने का गुहार लगा रही थी !

बड़े लोग हैं वो उनकी पहुँच बड़ी हैं
नेता पुलिस सब उनके हाथो में हैं
उनके ही दम पे
कातिल ही कातिल को ढूंढने की गुहार लगा रहें  हैं !

मै बेचरा   एक अतृप्त आत्मा
कैसे सबको सब सच बतलाऊ
अबतो बस एक आस बची हैं अपने न्याय तंत्रपे मुझको
न्याय मिलेगा मेरे पापा को,जो सजा मिलेगा कातिल को !

— Written by Anil Sinha

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August 12

जीवन शारथी !

हे कान्हा तुम मेरे जीवन शारथी बनजाओ
कैसे जीते जीवन का  महाभारत, ये तुम मुझे बताओ !

मेरे मन की विशाल कौरव सेना खड़ी है मुझे हराने को
पर मेरे अपने पांच पांडव, काम क्रोध मोह लोभ अहंकार
पर नहीं है मेरा ही अधिकार,
कैसे हो अधिकार अपनों पर, ये तुम मुझे बताओ  !

अपने ही जो ना हो अपने वश मे
तो कैसे लड़ने को दुश्मन से
अपना धनुष उठाऊँ, ये तुम मुझे बताओ  !

असमंजस मे है मेरा अर्जुन
प्रभु तुम अपना विश्वरूप  दिखाओ
खड़े खड़े जीवन के रणभूमि मे जीवन का सार बताओ !

नहीं आहत हो कोई अपना  शब्द वाणो से मेरे
फिरभी नागफांस मे बँधजाये वो मेरे
कैसे भेदे जीवन के चक्रब्यूह को ये राज मुझे बताओ  !
हे कान्हा तुम मेरे जीवन शारथी बन जाओ

कैसे जीते जीवन का महाभारत, ये तुम मुझे बताओ  !

— Written by Anil Sinha

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August 9

जीवन एक रंगमंच !

जीवन के  इस रंगमंच पर
सबको अपना अभिनय कर जाना है !

कोई बना  राजा यहाँ पर
तो कोई  बना भिखारी !

कोई बना चोर यहाँ पर
तो कोई बना सिपाही !

जिसको चुना प्रभु ने जिस अभिनय के काबिल
उसको उस अभिनय को, सर्वोत्तम  कर जाना है !

ना कोई संवाद है अपना, ना कोई है भाव
हमें तो बस रटे   रटाये संवाद -भाव को
जिवंत कर, अपना अभिनय कर जाना है !

अब बहुतो के जेहन  मे बात जरूर ये आएगी
जब सब कुछ है ये प्रभु कि माया !

तो क्यों खेले हम चोर सिपाही
छोड़ भिखारी का अभिनय राजा ही  बन जाते है !

अब बात चली है भगवन पे तो वो हॅसकर तुम्हे बताते हैं !

क्या कोई पिता चाहेगा एक पुत्र हो राजा उसका
दूजा बने चोर या कोई बने भिखारी?
पिता तो सभी आपने पुत्रो को संपन्न बनाना चाहेगा !

मनुष्य के नीयत और कर्म ही उससे सब करवाते है
जो मनुष्य करता है कर्म वैसा ही वो पता है !

यही बात तो हम सबको
धरती के इस रंगमंच पे दिखाते है !

जैसा कर्म करोगे वैसा
फल देगा भगवन !

तो कर्म को आपने बदलो
समुचित पात्र  और संवाद तुम्हे मिलजायेंगे !

चलकर  उन्ही  राह  पर,
तुमको आपने मंजिल मिलजायेंगे !!

जीवन के इस  रंगमंच पर सबको
अपना अभिनय कर जाना है !

— Written by Anil Sinha

August 6

क्या चाहता है ये दिल ?

यह कविता आदरणीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को समर्पित है !

दिन के उजाले में भी
जा कर तंग गलियों में
रोशनी तलाशता है दिल
क्या चाहता है ये दिल !

शाही जिंदगी में भी
जो नींद ना हो आँखों में
जमी पे सोना चाहता है दिल
क्या चाहता है ये दिल !

लजीज खाने पड़े हो सामने
पर तलब उन खानो की नहीं
सूखी रोटी चबाना चाहता है दिल
क्या चाहता है ये दिल !

आसमा के बुंलदियों के बाद
जमी को क्यों निहारता है
जब मालूम था आसमा के लिए जमी को छोड़नी होगी
क्या चाहता है ये दिल !

ऐसा क्यों चाहे ये दिल ?

कैसे जिए हम शाही जिंदगी
नींद कैसे हो आँखों में
जहाँ करोड़ों अपनों को
एक छत्त भी नहीं नसीब है !
कैसे तलब हो शाही खाने की
जहाँ करोड़ों भूखे सोते है !

तो अब क्या चाहता है ये दिल ?

दिल चाहता है
दिन के उजाले में
वो तंग गलियां भी उजाली हो !
सबके सरपे पक्का छत अपना हो
सबके लिए दो वक़्त के खाने हो
सब अन्नदाता खुशहाल हमारे हो !!

तो अब क्या सोचता है करने को ये दिल ?

हमको ऐसा कुछ करना है की
ना कोई होगा बेरोजगार यहाँ पर
ना मांगेगा कोई भीख यहाँ पर
आत्मनिर्भर बने ये देश हमारा
फिर सोने की चिड़िया कहलाये !

अंत में

गर मिलजाए मौका एक ऐसा
इस धरती का कर्ज चुकाने को
दुश्मन के गोली खाने को
पहला छाती ये अपना हो !

– Written by Anil Sinha

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August 1

जिंदगी का खेल

जिंदगी के खेल में 

जिंदगी का मुकाम बदल गया !

जिंदगी के सफ़र में 

जिंदगी का खोटा सिक्का चल गया !

जिंदगी के तलाश में 

जिंदगी का मायना बदल गया !

जिंदगी के परीक्षा में 

जिंदगी का खरा फेल हो गया !

जिंदगी के दाव पेंच में 

जिंदगी का प्यादा वजीर बन गया !

जिंदगी के तपिष से 

जिंदगी का चायवाला PM बन गया !

जिंदगी के माखौल से 

जिंदगी का राजकुमार फ़क़ीर बन गया !

जिंदगी के खेल में 

जिंदगी का मजाक बनाने वाला बर्बाद हो गया !!

– Written by Anil Sinha

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August 1

ढूँढती निगाहें !

तालियों के गङ्गाहट के बीच
ढूँढती है निगाहें
उन हाथो को जो बज नहीं रहे थे !

दर्द होता है देखकर कि
जो हाथ बंधे हुए थे
वो तो अपनों के ही थे !

हमने तो ससम्मान बुलाकर उनको
अग्रिम पंती में बिठाया था !

हमने तो सोचा था
हासिल कर इस मुकाम को
हम उनका मान बढ़ाएंगे !

पर ना जाने क्यों अब
उनके चेहरे मुरझाये थे !

बार बार हम सोच रहे थे
क्या खता हुई है हमसे
हमने तो वो सब कुछ की
जो बन सकता था हमसे
फिर भी ना जाने वो
क्यों आज बने बेगाने थे !

ढूँढती है निगाहे
लाखो अपनों के बीच
तालियों के गङ्गाहट के बीच
सिमटे बैठे कुछ बेगाने थे !!

– Written by Anil Sinha

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