January 31

नये वर्ष की नई शपथ !

नये वर्ष के आते हीं हमने
शुभकामनाओ की झड़ी लगाई!

कहीं व्हाट्स ऍप और एस ऍम एस तो
कहीं हाथ मिलाकर दी बधाई और
कहीं बांटी फूल मिठाई!

जख्म अभीतक भरे नहीं थे कि
ले नई उमंगो को, नव वर्ष दरवाजे पे आई!

अब उसका सत्कार तो करना हीं था
ला मुस्कुराहट चेहरे पर हमने
शुभसंदेशों की झड़ी लगाई!

चाँद सितारों तक को पाने की सारी दुआएं हमने भी पाई
पर उन सपनो को कैसे पूरा करना हैं
नहीं किसी ने मुझे बताई!

अब बहुत मिलचुका सपनो का उपहार
अब सोचना था
उन सपनो को पूरा करने का
कौन सा राह करें अख्तियार!

नये वर्ष की नई शपथ ले
अब हम सब  हैं तैयार!!

जहाँ बच्चे मन लगा पढ़ने का लेते हैं शपथ
वहीँ युवा देश का अपने कर्मो से
देश को सम्मान दिलाने का लेते हैं शपथ!

तथा देश के बड़े बुजुर्ग नेतागण
जनहित में जो भी कानून बनाते हैं
उन कानूनों का अपने संविधान का
पालन करने का हम सब लेते हैं शपथ!

इस नये वर्ष की नई शपथ पे
अमल कर हम सब देश को
नई उचाईयों पर ले जाने का लेते हैं शपथ !!!

— Written by Anil Sinha

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January 31

समय कभी रुकता नहीं

ऐ समय क्योँ कभी तू रुकता नहीं
करोडो वर्ष से तू चलता हीं रहा हैं
क्या कभी तू थकता नहीं!

करोडो साथ चले तुम्हारे
कुछ दूर चले साथ तुम्हारे!

कुछ का साथ समय ने छोड़ा
कुछ ने साथ समय का छोड़ा!

जो छूट गये सो छूट गये
समय अटक कर राह कभी किसी का देखा नहीं!

समय यही बताता हैं सबको समय लौट कर आता नहीं
जो समय गँवाता हैं वो जग में कुछ बन पाता नहीं!

वहीँ समय का ज्ञान जिसे हो जाता सबकुछ वो पालेता हैं
कीर्तिमान रचता हैं जग में नया इतिहाँस बनाता हैं!

सच मानो तो
ये समय हीं हैं जो रंक को राजा
और राजा को रंक बनाता हैं!

कहते हैं कई साम्राज्य ऐसे भी थे
जहाँ सूरज कभी अस्त नहीं होता था
पर समय के साथ आज वो इतिहाँस के पन्नों पे हैं!

यहाँ तक कि हमारे राम कृष्णा और पैग़म्बर भी
आज हमारे ग्रंथो के शोभा हैं!

ये बातें हमें बताती हैं
दुनियाँ में सबसे बलवान समय  हीं हैं!

तभी तो समय कभी रुकता नहीं
कभी थकता नहीं हैं!!

— Written by Anil Sinha

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January 31

एक पर्व मकरसंक्रन्ति

नये वर्ष का पहला पर्व
हम लोहड़ी मकारसंक्रन्ति या पोंगल
के रूप में मानते हैं!

भले हीं हम भाषा और छेत्र के आधार पर
अलग अलग तरीके से मानते हैं
पर उद्देश्य मूल उसका एकहि होता हैं!

क़ृषि प्रधान अपना ये देश
जब पहला फसल काटकर खलिहानो में लाता हैं
तो नये साल का नये फसल का ये त्यौहार मनाता हैं!

कोई लकड़ी या पराली जलाकर
उसके फेरे लेकर उसमे धान रावडी
समर्पित कर उसे लोहड़ी के रूप मनाता हैं!

कोई नये धान का चूड़ा तिल और गुड़ का लड्डू
तथा नये चावल दाल और आलू से खिचड़ी पका
इसे तिलसंक्रान्त या खिचड़ी के रूप में मानते हैं!

कोई नये फसल से नया पकवान बना भोग लगा
दीप और आतिस्बाज़ी जला
इसे पोंगल के रूप मानते हैं!

अब कड़ी मेहनत से फुर्सत पाकर
कहीं लोग पतंग उड़ाते हैं!

तो कहीं जलाकट्टु के माध्यम से
अपने साहस का परिचय देते हैं!

ये सारे पर्व हमारे समाज को जोड़ने
तथा संस्कृति और परम्परा को
कायम रखने का एक प्यारा विधा हैं!

और इन्ही में एक विधा का नाम मकरसंक्रान्ति हैं
नये वर्ष का पहला पर्व ये मकरसंक्रान्ति हैं!!

— Written by Anil Sinha

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January 2

धुंध !

इस धुंधली धुंध के शाया में 
जीवन जंजाल के माया में
नहीं सूझता जीवन पथ हैं
कौन सा पथ गर्त को जाता हैं
कौन सा पथ मंजिल को जाता हैं!

इस धुंधली धुंध के शाया में
नहीं सूझता  जीवन पथ हैं 
एक  बटोही जीवन पथ का,
जीवन के चौराहे पे खड़ा
असमंजस में पड़ा हुआ हैं
कौन सा पथ मंजिल को जाता हैं!

ना हीं  अब जीवन के पल ज्यादा हैं
ना पैरों में बल ज्यादा हैं
जो  हर  राह पर चल कर परखे
कौन सा पथ मंजिल को जाता हैं!

ये आँखों कि कमजोरी हैं या
मौसम में हीं धुंध सा छाया हैं
ना हीं साथ पथिक ना हम शाया हैं
कौन बताये कौन सा पथ मंजिल को जाता हैं!

तीन पहर जीवन के बीत चुके हैं
अब एक पहर हीं बाकी हैं
अब तक शंशय बना हुआ हैं
कौन सा पथ मंजिल को जाता हैं!

हार ना मानी जिसने अब तक
धुंध उम्र थकान या आँखों कि कमजोरी
कैसे बन सकती थी उसके राह का रोड़ा
निश्चय कर जिस पथ  चला वो पथ मंजिल को जाता हैं!

दृढ निश्चय कर ज्यो हीं वो आगे बढ़ता हैं
रथ पे सवार कोई आता उसके जीवन के शंध्या काल में
बिठा उसे ले जाता हैं
उस पथ जो उसके मंजिल को जाता हैं!!

January 2

मंगल पावन वर्ष !

नये वर्ष की पावन बेला में
शुभ कामनाओं की झड़ी लगी हैं!

कितना मंगलमय ये पावन पल हैं
सुभकामनाओं से मोबाइल मेरी भरी पड़ी है!

दोस्त और दुश्मन का  कोई भेद नहीं हैं
मानो आपस का  कोई मतभेद नहीं हैं!

अच्छे भावनाओ के आदान -प्रदान का
एक सकारात्मक सोच का सुन्दर माहौल बना हैं!

वैसे सोचो तो बात कोई विशेष नहीं हैं
दो शब्द मंगल कामनाओं के  क्या
किसी का भाग्य बदल सकता हैं?

हाँ!एक नहीं लाखो लोग जब  वही बात कहेँगे
तो सच तो उसको होना हीं  हैं!

एक एक बून्द  स्नेह का मिलकर
एक स्नेह का सागर तो बनना हीं हैं!

बारम्बार मन्त्रोंचारण  जैसे
मंदिर का माहौल बदल देता हैं!

बारम्बार कहे मंगल शब्द सब मंगल कर देता हैं
बहुत जोर होता है शब्दों में जब लाखो कह देता हैं!
चाहे वो शब्द अमंगल या मंगल का होता हैं!

ये नया वर्ष भी एक ऐसा हीं दिन होता हैं
जाने अनजाने हीं मंगल  वर्षा होता हैं!

हम तो शोच रहें हैं कि काश
हर दिन या माह एक नया वर्ष होता तो
हमारे कहे शब्द लाखो का  भाग्य बदल देता !

औपचारिक हीं सही हम मंगल शब्द जब कह जाते हैं!
जाने अनजाने हम भाग्यविधाता बनजाते  हैं!

तो बारम्बार कहें सबको हैप्पी न्यू ईयर
ये शब्द हैं,जो हम सबका भाग्य बदल देता हैं !!!

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November 29

इलेक्शन !

अपने राज्य या देश का नेता चुनने को इलेक्शन होता हैं !
वो नेता लोगों का भीड़ जुटा उन्हें सब्जबाग दिखाता हैं !

सच जिसे मानकर भोली जनता उन्हें माला पहनाती हैं !
नेता बन वो नेता अभिनेता बनजाता हैं !
जो टीवी के परदे पर हीं अब सिर्फ नजर आता हैं !

बाटजोहती भोली जनता को
अगले इलेक्शन में हीं नजर आता हैं !
फिर से मुर्ख  बनाता हैं !

ऐसा एक नहीं सारे नेता हीं करते हैं !

असमंजस में होती हैं जनता जब जब इलेक्शन होता हैं !
दगाबाजो कि टोली में से किसी एक को चुनना होता हैं !

ये तो हुई पोलिटिकल इलेक्शन कि बाते जो पांच सालमे होता हैं !

एक इलेक्शन अपना नेता मन भोली आत्मा के समक्ष
रोज लड़ा करता हैं !
झूठे वायदे कर ये मन रोज भोली आत्मा को ठगता हैं !

ठगी हुई वो आत्मा फिर भी मंद मंद मुस्काती हैं !
मानो कहती हो ठगने वाला नहीं किसी को खुद को हीं  ठगता हैं!

समझो कोई आत्मा सिगरेट शराब छोड़ने को मनको
समझाती हैं !
नेता मन वादे करता हैं पर नहीं निभाता हैं !

वो किसको ठगता हैं?

कैंसर से पीड़ित हो मन अपने करनी पर पछताता हैं !
आत्मा तो निर्मल अमर हैं ये शरीर रेन बसेरा हैं!
शरीर का दुख तो मन हीं झेलता हैं वो हीं पछताता हैं !

ठगा हुआ सा मन रहजाता हैं !
बदल आत्मा अपनी पार्टी नया सरकार बनाती हैं !!!

— Written by Anil Sinha

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November 29

कौन हैं किसका दुश्मन ?

रौशनी का दुश्मन अंधकार होता हैं
रौशनी जहाँ होता अंधकार नहीं टिक पाता हैं !

अज्ञान का दुश्मन शिक्षा होता हैं
शिक्षा जहाँ आ जाता अज्ञान नहीं टिक पाता हैं !

वैमनष्य का दुश्मन शौहार्द होता हैं
लोग गले जब लगजाते हैं वैमनस्य कहीं छुपजाता हैं !

गरीबी का दुश्मन अमीरी ?  नहीं !
अमीर सोच हीं होता हैं !

ये सोच ही हैं जो इंसान को गरीब और अमीर बनाता हैं !

जन्म लेकर भी गरीब के घर में कोई गरीब नहीं होता हैं
माँ बाप और उसके परिवेश का सोच गरीब होता हैं !

जब वो बच्चा अपने सोच का मालिक खुद बनजाता हैं
और बड़े सोच का मालिक बन वो सोच बड़ा बनाता हैं !
मालिक तब उसको वो सब देता हैं जो हसरत उसका हैं!

अब आप बताओ कौन हैं किसका दुश्मन?

एक छोटा सोच जो गरीब बनाता हैं वो दुश्मन होता हैं
एक बड़ा सोच जो  अमीर बनाता हैं वो दोस्त  होता हैं !

अब  जब सोच हीं दोस्त सोच हीं दुश्मन होता हैं
हमको जो बनना होता हैं वो हीं दोस्त हमें चुनना होता हैं
कहते हैं संगत का असर हमपर बड़ा हीं होता हैं !!!

— Written by Anil Sinha

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November 25

अभाव ग्रस्त या तृप्त ?

अभाव ग्रस्त हो या तृप्त हो,मन इसका परिचायक हैं!
भाव अगर अभाव का हैं तो जीवन सूना सूना हैं!
तृप्त भाव अगर हैं तो जीवन का बगिया खिला हुआ हैं!

अभाव का भाव हीं दुख कि जननी  हैं!
सुख की दाता तृप्ति हैं!

कुबेर का सारा धन पाकर भी कुछ लोग सदा  दुखी रहा करते  हैं!
वही गुदड़ी में सोने वाला राजा खुद को कहता हैं!

दुनियाँ का कोई धन दौलत ऐशो आराम का साधन
सुख का पैमाना नहीं बन सकता हैं!
सब कुछ हासिल करके भी कई मन खुशियों को तरसता हैं!

हममे से कितनो ने सोचा हैं आखिर ऐसा क्यों होता हैं!
रात दिन गवां कर अपना धन दौलत वैभव को पाया हैं!
वो सारा कुछ क्यों कर हमको  मन का सुख ना दे पाया हैं!

सच पूछे तो जिन चिझो को सुख का साधन समझा था
वक्त गवां कर हमने पाया यही दुखो के कारण हैं !
गलत काम कर जिन चिझो को मैंने अपने घर लाया हैं
उन्ही चिझो ने आज मेरा सारा चैन चुराया हैं!

मानो ये ऐशो  आराम के साधन सुखचैन बेचकर पाया हैं!
कहते हैं अभाव का भाव जिसमे जितना कम होता हैं
वो इंसान उतना हीं सुखी होता हैं क्यों की वो
तृप्ति  सुख की दाता हैं!
अभाव ग्रस्त हो या तृप्त हो, मन इसका परिचायक हैं !!!

— Written by Anil Sinha

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November 24

पिंजरा !

चाहे जितना सुन्दर हो पिंजरा
चाहे सोने चांदी के हो
उनमे रखे हुए पशु पंछी से पूछो
क्या कोई उनको भाया  हैं!

उनको तो उनके घांस पूस का घोंसला
या पहाड़ का कंदरा हीं प्यारा हैं!
मूक प्राणी वो वन के हैं
उनको तो अपना समूह हीं यारा हैं!

पर हमने तो धोखे से जाल बिछा
उनको पकड़ कर अपने पिंजरे में डाला हैं!
शौख या शान हमारी हो सकती हैं कि
हमने उनको जबरन अनाथ बनाकर  पाला हैं!

अब चाहे जितना सुन्दर हो पिंजरा
चाहे सोने चांदी के हो
पर उन बेचारे को तो वो एक नहीं भाया हैं!

उनको ख़ुश रखने के खातिर
उनका पसंदीदा पकवान उन्हें परोसे जाते हैं!

शुरू शुरू में उन बेचारों ने उन्हें  सूंघकर छोड़ा था
सोचा था भूख हड़ताल से उनका दिल पिघल जायेगा
नहीं चला गांधीवाद जब उनका खाना हुआ जरुरी था!

भूल भुला कर अपने परिजन को संग इनके हीं जीना था
पर एक आश पाले हैं मन  में कि
इनमे से हीं कोई एक दिन इस पिंजरे को खोलेगा
आजाद हमें पिंजरे से कर हम सबकी दुआएँ लेलेगा!

— Written by Anil Sinha

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November 24

चन्दन का पलना !

चन्दन का पलना रेशम लागे डोरी!
पलना डुलाये मैया और गाये लोरी!
मैया की गोदी हर बच्चे को पलना लगता हैं!
प्यार भरी बाते माता की बच्चे को लोरी  लगता हैं!

ममता के छाव में पलकर बच्चा बड़ा होता हैं!
माँ  स्नेह का डोर थमा उसके जीवन साथी को देती हैं!
चाहे बूढा हो जाये कोई,मैया को वो बच्चा हीं लगता हैं!

पर आस्वस्त जब बच्चे के ओर से हो लेती हैं!
अलविदा दुनियाँ को वो कह देती हैं!
बहु बेटा बेटी दामाद नाती पोता से भरा पूरा परिवार हैं!

पर माँ बिन इस बूढ़े बच्चे का संसार हीं सूना हैं!
जो बच्चा माँ के आगे खाने में सौ सौ नखरे करता था!
आज वो नखरे भूल गया हैं सब कुछ खा लेता हैं!

मालूम उसे हैं की नखरे करने का मतलब भूखे सोना हैं!
माँ थोड़े हीं हैं जो सारे नखरे उठाएगी और उसे खिलाएगी!
माँ की याद उसे  हर छोटे मोटे बातो पे आती हैं!
पर होली और दिवाली पर उसकी याद बहुत सताती हैं!

माँ जहाँ चुन कर सबसे महंगे कपडे लाती थी त्योहारों पे!
वही आज चुन कर सबसे सस्ते कपडे बूढ़े बच्चे को
ये कहकर पहनाई जाती हैं कि ये हीं इनको अच्छे लगते हैं!
वो भी हाँ में हाँ मिला सहर्ष स्वीकार करता हैं!

टुक टुक  पत्नी देख रही होती अब उसकी भी क्या चलती हैं!
अपने बच्चों को ख़ुश करने को उनको हामी भरनी हीं थी!
सच पूछो तो कई बाते उनको भी  बहुत हीं खलती हैं!

आज वो सोची, माँ के जैसे मिट्टी का घरौंदा बना
परंपरा निभाते हैं!
ले नाती पोतो को संग जैसे हीं मिट्टी सानी थी
बेटी बहु खींच ले गये अपने बच्चों को मिट्टी से इन्फेक्शन  के डर से!

दूर खड़ा वो देख रहा था सोच रहा था जब
अपने नन्हें हाथो से मिट्टी का घरौंदा माँ के संग उसने
बनाई थी!
नहीं हुआ था कोई इन्फेक्शन, माँ कि सोच जो अच्छी थी!

आज  बच्चों को
ना हीं माँ के गोद नसीब हैं ना हीं चन्दन का पलना!
इन बच्चों को तो आया के हाथो हैं पलना!

हाई सोसाइटी के इन माताओ के लिये
ओल्ड फैशन हैं खुद अपने बच्चों को पालना!
अब क्या होगा चन्दन का पलना और रेशम कि डोरी
कौन डुलायेगी पलना कौन गायेगी  लोरी !!!

— Written by Anil Sinha

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