पिंजरा !
चाहे जितना सुन्दर हो पिंजरा
चाहे सोने चांदी के हो
उनमे रखे हुए पशु पंछी से पूछो
क्या कोई उनको भाया हैं!
उनको तो उनके घांस पूस का घोंसला
या पहाड़ का कंदरा हीं प्यारा हैं!
मूक प्राणी वो वन के हैं
उनको तो अपना समूह हीं यारा हैं!
पर हमने तो धोखे से जाल बिछा
उनको पकड़ कर अपने पिंजरे में डाला हैं!
शौख या शान हमारी हो सकती हैं कि
हमने उनको जबरन अनाथ बनाकर पाला हैं!
अब चाहे जितना सुन्दर हो पिंजरा
चाहे सोने चांदी के हो
पर उन बेचारे को तो वो एक नहीं भाया हैं!
उनको ख़ुश रखने के खातिर
उनका पसंदीदा पकवान उन्हें परोसे जाते हैं!
शुरू शुरू में उन बेचारों ने उन्हें सूंघकर छोड़ा था
सोचा था भूख हड़ताल से उनका दिल पिघल जायेगा
नहीं चला गांधीवाद जब उनका खाना हुआ जरुरी था!
भूल भुला कर अपने परिजन को संग इनके हीं जीना था
पर एक आश पाले हैं मन में कि
इनमे से हीं कोई एक दिन इस पिंजरे को खोलेगा
आजाद हमें पिंजरे से कर हम सबकी दुआएँ लेलेगा!
— Written by Anil Sinha