साधु संत !
इतने सुन्दर जीवन का
सुख का वैभव का मोह त्याग कर
साधु संत कोई बनता हैं !
क्या हम ने कभी सोचा हैं
क्यों कोई ऐसा करता हैं
सारे सुख को छोड़ साधु संत वो बनता हैं !
विज्ञान का रहश्य जिसतरह
वैज्ञानिक ढूढ़ता हैं !
जीवन का रहश्य
साधु संत ढूंढता हैं !
जिसतरह वैज्ञानिक विज्ञान के शोध में
अपना दिन रात खपाता हैं !
जीवन का रहश्य ढूढने में
साधु संत अपना जीवन खपाता हैं !
ये बात अलग हैं कि जहाँ
वैज्ञानिक अपने शोध से
सोहरत पैसा पाता हैं !
वही साधु संतो का शोध
नहीं पहचाना जाता हैं !
सुख साधन पैसा पहचान की मनसा
पहले ही वो छोड़ चूका होता हैं
इसलिए उनको कोई फर्क नहीं पड़ता हैं !
विदेशो में फिर भी उन्हें
पहचान तो मिलती हैं
पोप पादरी फादर के नमो से जाने जाते हैं !
सुख सुविधा के साधन भी उनको मिलते हैं
क्यों कि उन्होंने उसका नहीं परित्याग किया होता हैं !
उन्हें गलती से भी अगर कोई हाथ लगाता हैं
पलक झपकते वो सक्स सलाखों के पीछे होता हैं !
पर हमारे देश में ऐसे साधु संतो का हाल बुरा होता हैं !
ऐसे लोग जो समाज के लिये जीवन सार बताते हैं !
असामाजिक तत्वों द्वारा कभी पीट कर कभी जलाकर
वे मारे जाते हैं !
सरकारे भी पतानहीं क्यों संवेदनहीन बनी रहती हैं !
इनके सामाजिक कार्यों के लिये कोई मुआवजा या भत्ता नहीं होती हैं !
ना ही इनको कोई प्रशंसा या ताम्रपत्र दी जाति हैं !
फिर भी इनके जीवन के रक्षा का दायित्व
हम सबकी तथा सरकारों की हैं !!!