मैं शेर का बच्चा !
आंख खुली धरती पर मेरी जब !
खुद को राजवंश में पाया !
देख पिता का रौब मैं मन ही मन हर्षाया !!
ये आशीर्वाद प्रभु का हैं !
जो जन्म हुआ हैं मेरा जंगल के राजा के घर में !
आभार प्रगट करने को प्रभु का मैंने शीश झुकाया !!
जब मैं कुछ बड़ा हुआ !
तो संग खेलने को एक साथी ना पाया !
दूर दराज जो बच्चे खेल रहें थे जो उन्हें पास बुलाया !
भाग गये वो सब डरके मुझसे कोई पास ना आया !!
क्यों डरते वो सब मुझसे मुझे समझ ना आया !
कोमल मन बच्चे का मेरा बिन साथी मुरझाया !
माँ ने पूछा जो हाल मेरा मैंने अपना दुखड़ा बतलाया !!
नहीं असंभव कुछ दुनियाँ में माँ ने मुझे बताया !
नित प्रयास करो कोई ना कोई साथी मिल ही जायेगा माँ ने मुझे समझाया !!
फिर निकल पड़ा जो पुरे हौसले से एक छोटा मेमना पाया!
भाग रहा था वो भी डर से पर जाकर सामने
मैंने उसे समझाया !
मेरे जीते जी तुझको एक खरोंच ना आएगा
मैंने उसे बताया !!
तबक़ही जाकर बमुश्किल उसने दोस्ती को हाथ बढ़ाया !
हुई घनेरी हमारी दोस्ती
मैं जय वो वीरू कहलाया !!
एक दिन शाम को जब मैं खेल कर आया
और पापा को अपना भूख जताया !
निकल पड़े शिकार को झटपट कहा तुरंत लौट कर आया
कुछ देर में उन्होंने मेरे वीरू को जबड़े में दबोच कर लाया !
खून में लतपथ मेरा वीरू पीड़ा से कराह रहा था
पापा की आँखे चमक रही थी मानो तोहफा कुछ लाया !
छोड़ उसे मेरे सामने वो चले गये वहाँ से
चाट चाट के अपने वीरू के जख्मो को मैं उसे सहलाया !
अपने अधखुले आँखों से वीरू मुझको देख रहा था
मानो वो कहरहा था हमने विश्वास घात किया उससे
अपना वादा नहीं निभाया !!
बंद हो गई जो उसकी ऑंखें खुदपर गुस्सा बहुत ही आया
नहीं काबिल हूँ किसी के दोस्ती का
जो दोस्ती का धर्म नहीं मिभा पाया !
मैं खुद से बोला ये आशीर्वाद नहीं अभिशाप प्रभु का हैं
जो जन्म दिया दानव राजा के घर में
अब नहीं गर्व हैं मुझको राजवंश में होने का
धिक्कार मुझे इस जीवन का अपने वीरू को बचा ना पाया !
कूद गया पहाड़ के छोटी से ये जीवन राश ना आया !!!
— Written by Anil Sinha