August 26

एक अतृप्त आत्मा !

मैने तो अपने आकांक्षाओं की उड़ान भरी ही थी
की  मेरे पँख काट दिये गये, इल्जाम मुझपर ही लगाई
मैंने ही अपने पंखो को काटी थी !

क्या सोच सकते हैं आप
मेरी तो उड़ान अभी काफ़ी लम्बी थी
तो क्यों और कैसे
उड़ते हुए मैंने अपनी ही पँख काटी थी !

दलीले उनकी भी कम ना थी
बताया मै तो पागल हो गया था
ऐसे हालत में खुदखुशी लाजमी थी !

मान ली सबने उनकी दलीले
खुद मैंने ही अपनी जान गँवाई थी
बेशक कुछ अजीज और बूढ़े बाप ने आवाज उठाई थी!

जानते थे वो मै कायर नहीं था
ना ही मेरी ऐसी कोई मज़बूरी थी
हाँ मारने वाले को मुझे मारना उनकी मज़बूरी थी !

उनके हरकतो को,  पापो को हमने जो देखी थी
बड़े लोग थे वो
खुद को बचाने के लिये मुझे मारना उनकी मज़बूरी थी !

उन बेगानों ने मुझे मारने की साजिश तो की  थी
पर उनसे मुझे कोई  शिकायत नहीं थी
शिकायत तो मुझे सिर्फ अपने जानू से हैं
जो साजिसे सरगना थी !

पिलाके नींद की दवा आगोश में सुलाई थी
बोझिल निगाहों से देखता हू उसे
ऑंखें फटी रह गई थी
जब गिलाफ मेरे चेहरे पे उसने दबाई थी !

मै तड़प कर उठना चाहा उसे सबक सिखाना  चाहा
पर सबने मेरे हाथ पैर पकड़ रखी थी !

दम घुट रहा था, मै मौत के आगोश में जारहा था
जानू की मीठी आवाज़,
मरनेपर पंखेसे लटका देना,  आरही थी !

मै, नहीं ! मेरी आत्मा जानू को छोड़ने उसके घर गई थी
जानू अपने भाई को बता रही थी
मर गया हू मै पर मेरे मरने की खबर कल आएगी
उससे पहले निकाललो सारे पैसे जो मेरे बैंको में थी !

मेरे लिये ये बाते अब बेमानी थी
छोड़ को उसको वापस जो आया
मेरे शव को पंखे से लटकाई जा चुकी थी
सबूत सारे गुनाह की मिठाई जा चुकी थी !

दूसरे दिन जानू को रोता देख मुझे रुलाई आई थी
तब समझ आया ना ही मेरे आँख  हैं, ना जानू का दिल
सचमुच सा रोना रोकर एक्टिंग का किरदार निभाई थी !

कुछ पल को तो मै भी भौचक्का था
जिसने खुद मारा था मुझको
वो खुदही मेरे कातिल को ढूंढने का गुहार लगा रही थी !

बड़े लोग हैं वो उनकी पहुँच बड़ी हैं
नेता पुलिस सब उनके हाथो में हैं
उनके ही दम पे
कातिल ही कातिल को ढूंढने की गुहार लगा रहें  हैं !

मै बेचरा   एक अतृप्त आत्मा
कैसे सबको सब सच बतलाऊ
अबतो बस एक आस बची हैं अपने न्याय तंत्रपे मुझको
न्याय मिलेगा मेरे पापा को,जो सजा मिलेगा कातिल को !

— Written by Anil Sinha


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Posted August 26, 2020 by anilsinha in category "Poems

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