October 17

आश्रित !

कितना दुखदायी होता हैं
किसी के आश्रित जब कोई हो जाता हैं !

जिसके आश्रित हो बीवी बच्चे और पूरा परिवार
दुखदायी बहुत ही होता हैं जब  खुदआश्रित हो जाता हैं !

साख फैलाये घने बट बृक्ष कि छाया में आश्रित कोई आता हैं
और शकून वो पता हैं तो वृक्ष का सीना चौड़ा हो जाता हैं, एक अजीब सा सुख वो  पाता हैं !

पर वक़्त बदलता जाता हैं वृक्ष के तरुवर से कई नये वृक्ष उग जाते हैं
सींच सींच कर उन वृक्षों को वृक्ष बड़ा वो करता हैं,
इतना बड़ा वो करता हैं कि खुद बौना होजाता हैं
बूढा होजाता हैं आश्रित होजाता हैं कल तक जो उसपे आश्रित थे उनपे आश्रित होजाता हैं !

ये प्रकृति का नियम हैं एक दिन दाता ही जाचक बनजाता हैं !
पर उस जाचक के दीन भाव को कहाँ कोई समझ पाता हैं !

भाव प्रगट करें अपने मन का इससे पहले ही
हर कोई उसको ही कुछ समझा जाता हैं
अभिब्यक्ति कि आजादी भी अब नहीं रही सोच सोच
मुस्काता हैं दिल टुटा हो पर हाँ में शीश हिलाता हैं !

खुद को वो समझाता हैं अब तो यूँ ही आश्रित रहना हैं
चाहे कुछ भी हो जाये बंद अपने जुबां को रखना हैं
वर्ना नहीं पता कौन सी बात आश्रय दाता को चुभ जाये
और हम आश्रित कोपभाजित हो फिर अनाथ हो जाएँ
अब तो धन कि नहीं कोई चाहत हैं प्यार का आश्रय जरुरी हैं !

नाती पोता गोद में खेले कुछ फरमाइश नाना नानी
दादा दादी से कर ले बस उनके ही चाहत को पूरा
करने को थोड़े से धन कि चाहत हैं !

उसके लिये भी इस बेचारे को किसी पे आश्रित रहना हैं !
कितना दुखदायी होता हैं
किसी के आश्रित जब कोई हो जाता हैं !!

— Written by Anil Sinha



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Posted October 17, 2020 by anilsinha in category "Poems

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