January 2

मंगल पावन वर्ष !

नये वर्ष की पावन बेला में
शुभ कामनाओं की झड़ी लगी हैं!

कितना मंगलमय ये पावन पल हैं
सुभकामनाओं से मोबाइल मेरी भरी पड़ी है!

दोस्त और दुश्मन का  कोई भेद नहीं हैं
मानो आपस का  कोई मतभेद नहीं हैं!

अच्छे भावनाओ के आदान -प्रदान का
एक सकारात्मक सोच का सुन्दर माहौल बना हैं!

वैसे सोचो तो बात कोई विशेष नहीं हैं
दो शब्द मंगल कामनाओं के  क्या
किसी का भाग्य बदल सकता हैं?

हाँ!एक नहीं लाखो लोग जब  वही बात कहेँगे
तो सच तो उसको होना हीं  हैं!

एक एक बून्द  स्नेह का मिलकर
एक स्नेह का सागर तो बनना हीं हैं!

बारम्बार मन्त्रोंचारण  जैसे
मंदिर का माहौल बदल देता हैं!

बारम्बार कहे मंगल शब्द सब मंगल कर देता हैं
बहुत जोर होता है शब्दों में जब लाखो कह देता हैं!
चाहे वो शब्द अमंगल या मंगल का होता हैं!

ये नया वर्ष भी एक ऐसा हीं दिन होता हैं
जाने अनजाने हीं मंगल  वर्षा होता हैं!

हम तो शोच रहें हैं कि काश
हर दिन या माह एक नया वर्ष होता तो
हमारे कहे शब्द लाखो का  भाग्य बदल देता !

औपचारिक हीं सही हम मंगल शब्द जब कह जाते हैं!
जाने अनजाने हम भाग्यविधाता बनजाते  हैं!

तो बारम्बार कहें सबको हैप्पी न्यू ईयर
ये शब्द हैं,जो हम सबका भाग्य बदल देता हैं !!!

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November 29

इलेक्शन !

अपने राज्य या देश का नेता चुनने को इलेक्शन होता हैं !
वो नेता लोगों का भीड़ जुटा उन्हें सब्जबाग दिखाता हैं !

सच जिसे मानकर भोली जनता उन्हें माला पहनाती हैं !
नेता बन वो नेता अभिनेता बनजाता हैं !
जो टीवी के परदे पर हीं अब सिर्फ नजर आता हैं !

बाटजोहती भोली जनता को
अगले इलेक्शन में हीं नजर आता हैं !
फिर से मुर्ख  बनाता हैं !

ऐसा एक नहीं सारे नेता हीं करते हैं !

असमंजस में होती हैं जनता जब जब इलेक्शन होता हैं !
दगाबाजो कि टोली में से किसी एक को चुनना होता हैं !

ये तो हुई पोलिटिकल इलेक्शन कि बाते जो पांच सालमे होता हैं !

एक इलेक्शन अपना नेता मन भोली आत्मा के समक्ष
रोज लड़ा करता हैं !
झूठे वायदे कर ये मन रोज भोली आत्मा को ठगता हैं !

ठगी हुई वो आत्मा फिर भी मंद मंद मुस्काती हैं !
मानो कहती हो ठगने वाला नहीं किसी को खुद को हीं  ठगता हैं!

समझो कोई आत्मा सिगरेट शराब छोड़ने को मनको
समझाती हैं !
नेता मन वादे करता हैं पर नहीं निभाता हैं !

वो किसको ठगता हैं?

कैंसर से पीड़ित हो मन अपने करनी पर पछताता हैं !
आत्मा तो निर्मल अमर हैं ये शरीर रेन बसेरा हैं!
शरीर का दुख तो मन हीं झेलता हैं वो हीं पछताता हैं !

ठगा हुआ सा मन रहजाता हैं !
बदल आत्मा अपनी पार्टी नया सरकार बनाती हैं !!!

— Written by Anil Sinha

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November 29

कौन हैं किसका दुश्मन ?

रौशनी का दुश्मन अंधकार होता हैं
रौशनी जहाँ होता अंधकार नहीं टिक पाता हैं !

अज्ञान का दुश्मन शिक्षा होता हैं
शिक्षा जहाँ आ जाता अज्ञान नहीं टिक पाता हैं !

वैमनष्य का दुश्मन शौहार्द होता हैं
लोग गले जब लगजाते हैं वैमनस्य कहीं छुपजाता हैं !

गरीबी का दुश्मन अमीरी ?  नहीं !
अमीर सोच हीं होता हैं !

ये सोच ही हैं जो इंसान को गरीब और अमीर बनाता हैं !

जन्म लेकर भी गरीब के घर में कोई गरीब नहीं होता हैं
माँ बाप और उसके परिवेश का सोच गरीब होता हैं !

जब वो बच्चा अपने सोच का मालिक खुद बनजाता हैं
और बड़े सोच का मालिक बन वो सोच बड़ा बनाता हैं !
मालिक तब उसको वो सब देता हैं जो हसरत उसका हैं!

अब आप बताओ कौन हैं किसका दुश्मन?

एक छोटा सोच जो गरीब बनाता हैं वो दुश्मन होता हैं
एक बड़ा सोच जो  अमीर बनाता हैं वो दोस्त  होता हैं !

अब  जब सोच हीं दोस्त सोच हीं दुश्मन होता हैं
हमको जो बनना होता हैं वो हीं दोस्त हमें चुनना होता हैं
कहते हैं संगत का असर हमपर बड़ा हीं होता हैं !!!

— Written by Anil Sinha

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November 25

अभाव ग्रस्त या तृप्त ?

अभाव ग्रस्त हो या तृप्त हो,मन इसका परिचायक हैं!
भाव अगर अभाव का हैं तो जीवन सूना सूना हैं!
तृप्त भाव अगर हैं तो जीवन का बगिया खिला हुआ हैं!

अभाव का भाव हीं दुख कि जननी  हैं!
सुख की दाता तृप्ति हैं!

कुबेर का सारा धन पाकर भी कुछ लोग सदा  दुखी रहा करते  हैं!
वही गुदड़ी में सोने वाला राजा खुद को कहता हैं!

दुनियाँ का कोई धन दौलत ऐशो आराम का साधन
सुख का पैमाना नहीं बन सकता हैं!
सब कुछ हासिल करके भी कई मन खुशियों को तरसता हैं!

हममे से कितनो ने सोचा हैं आखिर ऐसा क्यों होता हैं!
रात दिन गवां कर अपना धन दौलत वैभव को पाया हैं!
वो सारा कुछ क्यों कर हमको  मन का सुख ना दे पाया हैं!

सच पूछे तो जिन चिझो को सुख का साधन समझा था
वक्त गवां कर हमने पाया यही दुखो के कारण हैं !
गलत काम कर जिन चिझो को मैंने अपने घर लाया हैं
उन्ही चिझो ने आज मेरा सारा चैन चुराया हैं!

मानो ये ऐशो  आराम के साधन सुखचैन बेचकर पाया हैं!
कहते हैं अभाव का भाव जिसमे जितना कम होता हैं
वो इंसान उतना हीं सुखी होता हैं क्यों की वो
तृप्ति  सुख की दाता हैं!
अभाव ग्रस्त हो या तृप्त हो, मन इसका परिचायक हैं !!!

— Written by Anil Sinha

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November 24

पिंजरा !

चाहे जितना सुन्दर हो पिंजरा
चाहे सोने चांदी के हो
उनमे रखे हुए पशु पंछी से पूछो
क्या कोई उनको भाया  हैं!

उनको तो उनके घांस पूस का घोंसला
या पहाड़ का कंदरा हीं प्यारा हैं!
मूक प्राणी वो वन के हैं
उनको तो अपना समूह हीं यारा हैं!

पर हमने तो धोखे से जाल बिछा
उनको पकड़ कर अपने पिंजरे में डाला हैं!
शौख या शान हमारी हो सकती हैं कि
हमने उनको जबरन अनाथ बनाकर  पाला हैं!

अब चाहे जितना सुन्दर हो पिंजरा
चाहे सोने चांदी के हो
पर उन बेचारे को तो वो एक नहीं भाया हैं!

उनको ख़ुश रखने के खातिर
उनका पसंदीदा पकवान उन्हें परोसे जाते हैं!

शुरू शुरू में उन बेचारों ने उन्हें  सूंघकर छोड़ा था
सोचा था भूख हड़ताल से उनका दिल पिघल जायेगा
नहीं चला गांधीवाद जब उनका खाना हुआ जरुरी था!

भूल भुला कर अपने परिजन को संग इनके हीं जीना था
पर एक आश पाले हैं मन  में कि
इनमे से हीं कोई एक दिन इस पिंजरे को खोलेगा
आजाद हमें पिंजरे से कर हम सबकी दुआएँ लेलेगा!

— Written by Anil Sinha

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November 24

चन्दन का पलना !

चन्दन का पलना रेशम लागे डोरी!
पलना डुलाये मैया और गाये लोरी!
मैया की गोदी हर बच्चे को पलना लगता हैं!
प्यार भरी बाते माता की बच्चे को लोरी  लगता हैं!

ममता के छाव में पलकर बच्चा बड़ा होता हैं!
माँ  स्नेह का डोर थमा उसके जीवन साथी को देती हैं!
चाहे बूढा हो जाये कोई,मैया को वो बच्चा हीं लगता हैं!

पर आस्वस्त जब बच्चे के ओर से हो लेती हैं!
अलविदा दुनियाँ को वो कह देती हैं!
बहु बेटा बेटी दामाद नाती पोता से भरा पूरा परिवार हैं!

पर माँ बिन इस बूढ़े बच्चे का संसार हीं सूना हैं!
जो बच्चा माँ के आगे खाने में सौ सौ नखरे करता था!
आज वो नखरे भूल गया हैं सब कुछ खा लेता हैं!

मालूम उसे हैं की नखरे करने का मतलब भूखे सोना हैं!
माँ थोड़े हीं हैं जो सारे नखरे उठाएगी और उसे खिलाएगी!
माँ की याद उसे  हर छोटे मोटे बातो पे आती हैं!
पर होली और दिवाली पर उसकी याद बहुत सताती हैं!

माँ जहाँ चुन कर सबसे महंगे कपडे लाती थी त्योहारों पे!
वही आज चुन कर सबसे सस्ते कपडे बूढ़े बच्चे को
ये कहकर पहनाई जाती हैं कि ये हीं इनको अच्छे लगते हैं!
वो भी हाँ में हाँ मिला सहर्ष स्वीकार करता हैं!

टुक टुक  पत्नी देख रही होती अब उसकी भी क्या चलती हैं!
अपने बच्चों को ख़ुश करने को उनको हामी भरनी हीं थी!
सच पूछो तो कई बाते उनको भी  बहुत हीं खलती हैं!

आज वो सोची, माँ के जैसे मिट्टी का घरौंदा बना
परंपरा निभाते हैं!
ले नाती पोतो को संग जैसे हीं मिट्टी सानी थी
बेटी बहु खींच ले गये अपने बच्चों को मिट्टी से इन्फेक्शन  के डर से!

दूर खड़ा वो देख रहा था सोच रहा था जब
अपने नन्हें हाथो से मिट्टी का घरौंदा माँ के संग उसने
बनाई थी!
नहीं हुआ था कोई इन्फेक्शन, माँ कि सोच जो अच्छी थी!

आज  बच्चों को
ना हीं माँ के गोद नसीब हैं ना हीं चन्दन का पलना!
इन बच्चों को तो आया के हाथो हैं पलना!

हाई सोसाइटी के इन माताओ के लिये
ओल्ड फैशन हैं खुद अपने बच्चों को पालना!
अब क्या होगा चन्दन का पलना और रेशम कि डोरी
कौन डुलायेगी पलना कौन गायेगी  लोरी !!!

— Written by Anil Sinha

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November 23

रोगदायनी माता !

प्रभु ने संसार के लोगों को कई माताओ का
शक्तिरूपेण  करवाया हैं!
सरस्वती माता विद्या दायनी हैं!

लक्ष्मी माता धन दायनी हैं!
दुर्गा काली  बल दायनी हैं!
सुख दायनी सारी माता हैं!

अब एक नयी माता पभु ने
दिया हैं इस जग को!
देख उन्हें लोगों ने पूछा
कौन हो आप कहाँ से आई हो!
मुस्कुराकर वो बोली
मैं रोग दायनी कोरोना माता हूँ!
एक शमा हूँ मैं कब्रगाह से आई हूँ!

समझ ना आया भोली जनता को
उनको देखन को सबने भीड़ जुटाया!
माँ ने सबको पास बुला उन्हें गले लगाया!
एक थी वो अब अनेक हुई जिसको भी  गले लगाया!

ये करिश्मा देख रहा था एक बुजुर्ग वहाँ पर!
दौड़ा चिल्लाया सबको समझाया!
दूर रहो उस माता से दोस्त यार और भ्राता से!
मास्क लगाओ अपने मुख पे
और रखो दो गज कि सोशल डिस्टेंसिंग!

जब भी कुछ काम करो
हाथो को साबुन से साफ करो!
ये मूल मंत्र हैं इस कोरोना माता से बचने का!
आस पास के लोग नहीं पूरी दुनियाँ ने
उनके  बातो पे अमल किया था!

पर तब तक कोरोना अपना जाल फैला चुकी थी
दुनियाँ में हाहाकार मची थी लाशो कि अम्बार लगी थी!
लोगों ने ना छोडी हिम्मत लड़ी लड़ाई विश्वस्तरीय थी!

डॉक्टर नर्स सिपाही और सफाई कर्मचारी
जान पे खेल इन्होने जन जन की सेवा की
जननायक के आवाहन पर ताली थाली बजा और दीपजला,
पुरे भारतवासी ने इनकी हौसला अफजाई की!

कल कारखाने मौल दुकाने दफ़्तर और स्कूल
सब हो गये बंद!
लोगों ने भी खुद को किया अपने घरों में बंद  और
अगर निकले भी तो मास्क लगा सोशल डिस्टेंसिंग
अपनाई, बारम बार हाथ वो धोये घर कि करी सफाई!

देख हौसला लोगों का कोरोना माता हो गई पस्त!
कभी ना सोचा था आपस में लड़ने वाले लोग
एक जुट हो उससे लड़ पायेंगे, खुद बचेगे
औरो को बचायेंगे!

जब हार  गयी कोरोना मुस्कुराकर बोली!
अक़्लमंद हो तुम सब,उस बुजुर्ग का कहना माना!

वर्ना हमने तो सोचा था कब्रगाह बनेगा
पुरे विश्वा का ठिकाना!
मान गये तुम सबको आता हैं!
रोगदायनी कोरोना माता को हराना!!!

— Written by Anil Sinha

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November 11

युग परिवर्तन !

जैसे रात दिन में, दिन माह में, माह वर्ष में
परिवर्तित होता हैं !
वैसे ही कई वर्ष -दसको बाद
ये युग परिवर्तित होता हैं !

सतयुग, द्वापर, त्रेता, कलयुग 
काल चक्र युग के हैं
इस युग परिवर्तन ने
सतयुग से कलयुग में हमको लाया हैं!

पर बहुत हो चुका
कलियुग का तांडव
अंत इसका भी  आया हैं
अब तो सतयुग आयेगा !

इस कलयुग ने अपने काल में कलुशित हर मनको करड़ाला हैं !
पर सतयुग का तो शर्त यही हैं
निर्मल मन ही सतयुग में जायेगा !

अब यातो  इस कलुशित मन को
निर्मल हमको करना होगा या
परित्याग शरीर का करना होगा !

इस सतरंगी दुनियाँ के मायाजाल से
कौन निकलना चाहेगा
परित्याग शारीर का कर
सतयुग में जाना चाहेगा !

अब काल चक्र तो घूम रहा हैं
सतयुग तो हरहाल में आयेगा
कोई साथ जाये न जाये
युग परिवर्तन तो आयेगा !

अब निर्मल मन  को छोड़
सबको प्रकृति ही मरवाएगा
कहीं कॅरोना कहीं प्राकृतिक आपदा से
लोगोँको मरवायेगा !

वक़्त अभी भी हैं
जो अपने कलुशित मन को निर्मल कर पायेगा
वही सशरीर इस सतयुग में जा पायेगा !

अब विकल्प दो ही हैं जन जन के पास
या तो खुद निर्मल बन जाओ
या मौत को गले लगाओ
युग परिवर्तन तो होनी हैं तुम जाओ न जाओ !!

— Written by Anil Sinha

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November 11

महान आत्मा हो आप !

कितने योनि से होकर इस मानव शरीर को
धारण कये हो आप महान आत्मा हो आप !

खुद को नहीं जानते पहचानते थे पहले आप
तभी तो जाने अनजाने गलत काम करते थे आप !

पर अब तो खुद को जान गये हो पहचान गये हो आप 
तो ये भी जानो किसी खास मकसद से
इस धरती पर जन्म लिये हो आप !

इस धरती पे आना बड़ा होकर बच्चे पैदा करना
उनका  परवरिश करना और बूढा होकर मर जाना
क्या सिर्फ इसलिए जन्मे हो आप?

नहीं ये परिवार सुख वैभव इसका, ईश्वर की  एक माया हैं !
इनके बीच  रहकर भी निर्लिप्त रह सकते हैं आप !
क्यों कि एक महान आत्मा हो आप !

सांसारिक जीवन में रहकर भी निर्लिप्त भाव से
जीवन सार्थक कर सकते हो आप !

इसके लिये खुद आपको अपना निरिक्षण करना होगा
अपने संसाधन से क्या कर सकते हो कार्य जगत के भलाई का ये निर्णय करलो आप !

अगर नहीं हैं कोई संसाधन तो सेवा भाव ही चुन लो आप !
आस पास पशु पक्षी या लाचार वृद्ध
इनमे कोई चुनलो आप !

इनका ही सेवा से महसूस करोगे महान आत्मा हो आप!
और नहीं तो खुद में ही परिवर्तन करलो आप !

पशु पक्षियों पे दयाभाव रख मांसाहारी से शाकाहारी बनजाओ आप !
जब आप बदलोगे बदलेगा परिवार और संसार आपका !

इस छोटे से बदलाव का कर्णधार हो आप !
एक महान आत्मा हो आप !

ये सच हैं !
खुद चिंतन कर बोलो !

मैं एक महान आत्मा हूँ !
मैं एक खास मकसद से इस दुनियाँ में आया हूँ !
मैं इस कलयुगी दुनियाँ को
सतयुगी दुनियाँ बनाने आया हूँ !

एक महान आत्मा हो आप…….. ॐ शांति  !!!

— Written by Anil Sinha

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November 11

जीना एक कला हैं !

करोडो लोग हैं इस दुनियाँ में
जो जैसे तैसे जी लेते हैं
जो भी हैं जैसा भी हैं
किस्मत के नाम पे समझौता कर लेते हैं !

नहीं जानते वो बेचारे
किस्मत के बीज (संस्कार) भले ही
ईश्वर के घर से लाई जाती हैं
पर इसे धरा पर कर्मठता से उगाई जाती हैं !

बचपन से ही जिन मस्तिष्क को वैसे ही
पौस्टिक भोजन और बातो से उर्वरक बनाई जाती हैं !

फिर उस मस्तिष्क में संस्कारो के बीज बोई जाती हैं!
वैसे ही बीज वृक्ष रूप में किस्मत  के धनी कहलाते हैं !
अब मस्तिष्क को उर्वरक बनाना ही जीने की कला हैं !

सुबह शकरात्मक सोच के साथ उठना फिर नित्यकर्म कर
योग वर्जिस और प्रभु पूजन से अपना दिनचर्या करते हैं!

शाम को हॅसते हुए ही घर को वापस आते हैं
और घर का माहौल खुशनुमा बनाते हैं तथा सोने से पहले प्रभुसे
अनजाने में हुए भूल का माफ़ी मांग अपना संकल्प  दोहराकर वो सो जाते हैं !

उठकर सुबह नित्य के भांति वही क्रम दोहराते हैं !
जीने की इसी कला के आधार पे सुख शांति से जीकर
अच्छे कर्मो के बल किस्मत का बीज (संस्कार)
अगले जन्म के लिये भी संचय कर जाते हैं !!!

— Written by Anil Sinha

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