मै एक गिलहरी प्रभु राम की
मै एक गिलहरी प्रभु राम की
एक गिलहरी प्रभु राम की
सामर्थ नहीं ज्यादा फिर भी
स्नेह अपार प्रतिप्रभु राम की
मै एक गिलहरी प्रभु राम की।
कैसे पार करेंगे प्रभु सागर
ये चिंता ना हो प्रभु को मेरे
क्यों कर चिंता हरलु प्रभु का
यही सोच मै चिंतित थी
मै एक गिलहरी प्रभु राम की।
सिकन एक जो आजाये
मेरे प्रभु के मुख्यमंडल पर
तो धिक्कार हैं मेरे जीवन पर
यही सोच मै चिंतित थी
मै एक गिलहरी प्रभु राम की।
वक्त नहीं कुछ ज्यादा हैं
सीता माता को छुड़ाने
प्रभु को सागर पार तो जाना हैं
इस सागर पे बनरहे सेतु को
जल्दी बनवाने मे
आन पड़ी हैं मेरे श्रमदान की
मै एक गिलहरी प्रभु राम की।
दौड़ दौड़ कर, बार बार
मुख मे लेकर मिट्टी के टुकड़े को
मै पाट रहीं थी सागर को
पर नजाने कैसे पड़ गई
नजर मुझपर मेरे प्रभु राम की
मै एक गिलहरी प्रभु राम की।
प्रभु आये मेरे पास स्नेह से मुझे सहलाये
मेरे जीवन को धन्य बनाये
मै तो हो गई प्रभु की दाश
मिट गई जीवन की प्यास
मै एक गिलहरी प्रभु राम की
मै एक गिलहरी प्रभु राम की।।