July 21

क्यों मै ऐसा लिखता हूँ ?

सोच रहे होंगे मेरे प्रिय
बंधु बांधव और शखा
क्यों मै ऐसा लिखता हूँ!

इस ढलती उम्र के संध्या कल मे
भूल भुला कर यौवन की बाते
सब जब प्रकृति और धर्म की चर्चा करते हैं
बीच उन्ही के
क्यों मै ऐसा लिखता हूँ!

जिस विचार से देखेंगे खुद को
वैसा ही खुद को पायेंगे दर्पण मे
सोच अगर बुढ़ापे की होंगी
तो भारी जवानी मे भी
खुद को बूढा जैसा पायेंगे!

पर अगर सोच बुढ़ापे मे भी
ज़वा दिलो की होंगी
दिल आपका ज़वा रहेगा
पास नहीं फटकेगें बुढ़ापे की बीमारी
जो रक्त मे गर्मी होंगी!

जीवन के उस मधुरिम पल को आप
जब जब करते होंगे याद
एक अजीब सी शिहरन
और रक्त मे गर्मी आती होंगी!

उसी रक्त की गर्मी को लौटने को
ज़वा आपको रखने को
मै ऐसा लिखता हूँ!

चाह यही दिल मे रखता हूँ
खुद रहू ज़वा और मेरे संगी साथी भी ज़वा रहे
नहीं उम्र की कोई शरहद हो
स्वच्छन्द विचारों का विचरण हो!

सहमत तो सारे हैं मेरे विचार से
कुछ ने तो मुस्कुराकर कुछ
ताली बजाकर अपनी सहमति जताई
तो मानो  हम सबको
अपने कॉलेज के दिनों की याद दिलाई
गई जवानी आज हमारी फिर लौटकर आई
गई जवानी आज हमारी फिर लौटकर आई !!

अनिल सिन्हा !



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Posted July 21, 2021 by anilsinha in category "Poems

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