January 2

धुंध !

इस धुंधली धुंध के शाया में 
जीवन जंजाल के माया में
नहीं सूझता जीवन पथ हैं
कौन सा पथ गर्त को जाता हैं
कौन सा पथ मंजिल को जाता हैं!

इस धुंधली धुंध के शाया में
नहीं सूझता  जीवन पथ हैं 
एक  बटोही जीवन पथ का,
जीवन के चौराहे पे खड़ा
असमंजस में पड़ा हुआ हैं
कौन सा पथ मंजिल को जाता हैं!

ना हीं  अब जीवन के पल ज्यादा हैं
ना पैरों में बल ज्यादा हैं
जो  हर  राह पर चल कर परखे
कौन सा पथ मंजिल को जाता हैं!

ये आँखों कि कमजोरी हैं या
मौसम में हीं धुंध सा छाया हैं
ना हीं साथ पथिक ना हम शाया हैं
कौन बताये कौन सा पथ मंजिल को जाता हैं!

तीन पहर जीवन के बीत चुके हैं
अब एक पहर हीं बाकी हैं
अब तक शंशय बना हुआ हैं
कौन सा पथ मंजिल को जाता हैं!

हार ना मानी जिसने अब तक
धुंध उम्र थकान या आँखों कि कमजोरी
कैसे बन सकती थी उसके राह का रोड़ा
निश्चय कर जिस पथ  चला वो पथ मंजिल को जाता हैं!

दृढ निश्चय कर ज्यो हीं वो आगे बढ़ता हैं
रथ पे सवार कोई आता उसके जीवन के शंध्या काल में
बिठा उसे ले जाता हैं
उस पथ जो उसके मंजिल को जाता हैं!!


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Posted January 2, 2021 by anilsinha in category "Poems

1 COMMENTS :

  1. By Subhasini Swaroopa on

    बहुत सुंदर रचना। जीवन का अंतिम सत्य तो यही है… कोई आता है रथ पर सवार..

    Reply

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