जीना एक कला हैं !
करोडो लोग हैं इस दुनियाँ में
जो जैसे तैसे जी लेते हैं
जो भी हैं जैसा भी हैं
किस्मत के नाम पे समझौता कर लेते हैं !
नहीं जानते वो बेचारे
किस्मत के बीज (संस्कार) भले ही
ईश्वर के घर से लाई जाती हैं
पर इसे धरा पर कर्मठता से उगाई जाती हैं !
बचपन से ही जिन मस्तिष्क को वैसे ही
पौस्टिक भोजन और बातो से उर्वरक बनाई जाती हैं !
फिर उस मस्तिष्क में संस्कारो के बीज बोई जाती हैं!
वैसे ही बीज वृक्ष रूप में किस्मत के धनी कहलाते हैं !
अब मस्तिष्क को उर्वरक बनाना ही जीने की कला हैं !
सुबह शकरात्मक सोच के साथ उठना फिर नित्यकर्म कर
योग वर्जिस और प्रभु पूजन से अपना दिनचर्या करते हैं!
शाम को हॅसते हुए ही घर को वापस आते हैं
और घर का माहौल खुशनुमा बनाते हैं तथा सोने से पहले प्रभुसे
अनजाने में हुए भूल का माफ़ी मांग अपना संकल्प दोहराकर वो सो जाते हैं !
उठकर सुबह नित्य के भांति वही क्रम दोहराते हैं !
जीने की इसी कला के आधार पे सुख शांति से जीकर
अच्छे कर्मो के बल किस्मत का बीज (संस्कार)
अगले जन्म के लिये भी संचय कर जाते हैं !!!
— Written by Anil Sinha