October 17

साधु संत !

इतने सुन्दर जीवन का
सुख का वैभव का मोह त्याग कर
साधु संत कोई बनता हैं !

क्या हम ने कभी सोचा हैं
क्यों कोई ऐसा करता हैं
सारे सुख को छोड़ साधु संत वो बनता हैं !

विज्ञान का रहश्य जिसतरह
वैज्ञानिक ढूढ़ता हैं !

जीवन का रहश्य
साधु संत ढूंढता हैं !

जिसतरह वैज्ञानिक  विज्ञान के शोध में
अपना दिन रात खपाता हैं !

जीवन का रहश्य ढूढने में
साधु संत अपना जीवन खपाता हैं !

ये बात अलग हैं कि जहाँ
वैज्ञानिक अपने शोध से
सोहरत पैसा पाता हैं !

वही साधु संतो का शोध
नहीं पहचाना जाता हैं !

सुख साधन पैसा पहचान की मनसा
पहले ही वो छोड़ चूका होता हैं
इसलिए उनको कोई फर्क नहीं पड़ता हैं !

विदेशो में फिर भी उन्हें
पहचान तो मिलती हैं
पोप पादरी फादर के नमो से जाने जाते हैं !

सुख सुविधा के साधन भी उनको मिलते हैं
क्यों कि उन्होंने उसका नहीं परित्याग किया होता हैं !

उन्हें गलती से भी अगर कोई हाथ लगाता हैं
पलक झपकते वो सक्स सलाखों के पीछे होता हैं  !

पर हमारे देश में ऐसे साधु संतो का हाल बुरा होता हैं !
ऐसे लोग जो समाज के लिये  जीवन सार बताते हैं !
असामाजिक तत्वों द्वारा कभी पीट कर कभी जलाकर
वे मारे जाते हैं !

सरकारे भी पतानहीं क्यों संवेदनहीन बनी रहती हैं !
इनके सामाजिक कार्यों के लिये कोई मुआवजा या भत्ता नहीं होती हैं !
ना ही इनको कोई प्रशंसा  या ताम्रपत्र दी जाति हैं !

फिर भी इनके जीवन के रक्षा का दायित्व
हम सबकी तथा सरकारों की हैं !!!



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Posted October 17, 2020 by anilsinha in category "Poems

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