मैं पौधा – सेवा जीवन से अंत तक !
हम पौधे
जीते हैं जीवन
मानवजाति के लिये !
बचपन से मरने तक और उससे भी आगे
हम समर्पित होते हैं
मानवजाति के लिये !
कसम जो हमने खाई हैं
होगा समर्पित हमारा जीवन
मानवजाति के लिये !
सांसे हमारी होती हैं
उनके साँसो के लिये
बड़े घनेरे होते हैं हम उनके छाओ के लिये !
तरह तरह के फल सब्जियों से
हम लद जाते हैं
मानवजाति के भोजन के लिये !
बाग बगीचे को
फूलो से भरते हैं
मानवजाति के सजावट सुंदरता और खुसबू के लिये !
झूम झूम कर
ठंडी हवाओं का झोंका हम फैलाते हैं
मानवजाति के लिये !
जीवन काल तक तो सेवा करते हैं
मरकर काठ भी हम बन जाते हैं
मानवजाति के लिये !
हम ही नहीं
पूरी कायनात बनी हैं
मानवजाति के लिये !
पर ये बेचारा मूर्ख
नये शहर बसाने को कलकारख़ाने लगाने को
मानवजाति जीवन दायी वृक्षों को काट रही हैं !
नहीं समझ हैं इनको शायद
जब तक हम जिन्दा हैं ये जिन्दा हैं
हम तो बस जिन्दा हैं मानवजाति के लिये !
हम पौधे
जीते हैं जीवन
मानवजाति के लिये !!!
— Written by Anil Sinha