October 10

मैं पौधा – सेवा जीवन से अंत तक !

हम पौधे
जीते हैं जीवन
मानवजाति के लिये !

बचपन से मरने तक और उससे भी आगे
हम समर्पित होते हैं
मानवजाति के लिये !

कसम जो हमने खाई हैं
होगा समर्पित हमारा जीवन
मानवजाति के लिये !

सांसे हमारी होती हैं
उनके साँसो के लिये
बड़े घनेरे होते हैं हम उनके छाओ के लिये !

तरह तरह के फल सब्जियों से
हम लद जाते हैं
मानवजाति के भोजन के लिये !

बाग बगीचे को
फूलो से भरते हैं
मानवजाति के सजावट सुंदरता और खुसबू के लिये !

झूम झूम कर
ठंडी हवाओं का झोंका हम फैलाते हैं
मानवजाति के लिये !

जीवन काल तक  तो सेवा करते हैं
मरकर काठ भी हम बन जाते हैं
मानवजाति के लिये !

हम ही नहीं
पूरी कायनात बनी हैं
मानवजाति के लिये !

पर ये बेचारा मूर्ख
नये शहर बसाने को कलकारख़ाने लगाने को
मानवजाति जीवन दायी वृक्षों को काट रही हैं !

नहीं समझ हैं इनको शायद
जब तक हम जिन्दा हैं ये जिन्दा हैं
हम तो बस जिन्दा हैं मानवजाति के लिये !

हम पौधे
जीते हैं जीवन
मानवजाति के लिये !!!

— Written by Anil Sinha



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Posted October 10, 2020 by anilsinha in category "Poems

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