October 10

एक कौवा !

मै तो ऋणी था
मध्य आयु कि शांत सुशील
ईश्वर भक्त उस नारी का !

चाहे गर्मी बारिश या शीत लहर हो   
नहीं क्रम टुटा उसका
हमें भोजन करवाने का !

सिर्फ हमें ही नहीं
गाय और कुत्ते को भी
उस देवी ने भोजन दी !
वर्षो से ये क्रम चल रहा हैं !

मेरी माँ भी
गुणगान किया करती थी उस देवी का ! 

एक दिन हमने देखा आँखों में आँसू उसके
अपने दोनों हाथ उठा के ऊपर 
नाम ले रही थी अपने भगवन का !

मै घबराया जाकर गाय और कुत्ते को बताया
उन्होंने पूछा कहाँ रहते हैं उसके भगवन
मै बतलाया वो तो ऊपर हाथ उठा कर
भगवन को बुला रही थी !

गाय और कुत्ते ने बोला
तब तो उसके भगवन ऊपर ही रहते होंगे
हम तो उड़ नहीं सकते
तुम्हे ही उसका दूत बनकर
भरना होगा उड़ान आशमा का !

उस देवी का दूत बनकर उड़ चला मै आशमा के ओर
उड़ता गया ऊपर उड़ता गया
थक गया था फिर भी उड़ता रहा
नजर दौड़ा कर उसके भगवन को खोजता रहा !

सूरज की गर्मी असहनीय हो गई थी
धीरे धीरे मै होशो हवास खोता गया !

होश आया जब तो
खुद को उस देवी के हाथो में पाया
अपने हाथो से मेरे चोंच में पानी डाल रही थी !

मै अपने पंखो को फड़फडाया
धीरे से छोड़ दी वो मुझे
उड़कर मै पेड़ के डाल पर जा बैठा !

काओ काओ…… आप तो खुद भगवन हो
नाहक ही चक्कर लगा रहा था आशमा का !!!

— Written by Anil Sinha



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Posted October 10, 2020 by anilsinha in category "Poems

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